International Journal of Multidisciplinary Research Configuration, ISSN: 2582-8649, Vol. 2, No.1, January 2022 Story-description of Dharamveer Bharti's novel: Gunanon Ka Devta (धर्मवीर भारती के उपन्यास “गुनाहों का देवता “का कथा–वस्तु वववेचन) Anita singh*; Dr. Abhay Shankar Dwivedi** Research Scholar; Research Supervisor, Department of Hindi, Career Point University, Kota Rajasthan Corresponding Author: [email protected] DOI: 10.52984/ijomrc2113 सार प्रस्तुत शोध पत्र में धममवीर भारती के उपन्यास गुनाहो के देवता का कथा वास्तु ववश्लेषण वकया गया है। गुनाहों का देवता” रूमानी भाव –भूवम पर आधाररत उपन्यास है I इस उपन्यास में चंदर और सधु ा के यवु ा मन की कोमल अनुभूवतयााँ ,भावुकता तथा आदशमवादी प्रेम है ,तो दूसरी ओर खंड –खंड होती नैवतकता और वतरोवहत होते सपनों की पीड़ा भी है, यह उपन्यास अपने समय में बहुत ही लोकवप्रय रहा I इसकी लोकवप्रयता का कारण जादुई रोमांस के साथ कहानी का सरल ताने –बाने में बुना होना है। शब्द-सकं ेत: रूर्ानी, युवा, कोर्ल-अनुभूवतयााँ ,भावुकता प्रेर् भूवर्का कराता ह ै तो वही दसू री ओर ‘सूरज का सातवां धर्मवीर भारती जी का पहला उपन्यास “गनु ाहों का घोडा’ दवे ता ”सन ् 1949 र् ें प्रकाशित हुआ था I यह नवीन िलै ी र् ें नए धरातल की सचू ना दते ा ह।ै कथा तीन खंडों र् ें शवभाशजत ह ै I प्रथर् खंड र् ें दोनों ही उपन्यासों र् ें अनेक प्रयोगात्र्क शस्थशतयों सधु ा की शवदाई ह ै ,दसू रे खंड र् ें पम्र्ी तथा चदं र का बोध होता ह।ै दोनों ही रचनाओ ंर्ें भारती जी का रोर्ांस से यक्तु प्रर्े प्रसंग ह ैतथा तीसरे खंड र् ें का काव्य पक्ष (भावकु व्यशक्तत्व ) सवमत्र शवद्यर्ान सधु ा की र्त्ृ य ु के साथ उपन्यास की सर्ाप्ती हो शदखाई दते ा ह।ैi जाती ह ै I कुल तीन सौ इक्यावन पष्ठृ ों र् ें इस उपन्यासकी पररसर्ाशप्त हुई ह ै I यह एक प्रेर् कथा कथा-वस्तु का वववेचन वाला उपन्यास ह ै ,शजसर्ें हर्ें कल्पना भावकु ता गुनाहों का देवता सन ् 1949 ई. र्ें शलखा गया के तान े –बाने का संदु र सर्न्वय शचत्रण शर्लता ह ै भारती जी पहला उपन्यास ह ै जो र्नष्ु य के सहज I उपन्यास र्ें एक ही परुु ष पात्र (चंदर)ह ै,शजसका और सरल प्रर्े की पराकाष्ठा को प्रस्तुत करता ह।ै तीन तीन नाररयों स ेसंबंध रहा I कहानी इन्हीं पात्रों ‘गनु ाहों का दवे ता’ नयी पीढी के पाठकों का के इद-म शगद म रची गई ह ै I उपन्यास वणनम ात्र्क शविेषकर शकिोरवय पाठकों का इतना शप्रय बन काल्पशनक गद्य कथा ह।ै सका क्योंशक इसर्ें अपेक्षाकृत शजन उलझी हुई र्लू कथा की रचना र् ें लेखक सजग ह ै उसर् ें संवेदनाओ ंका शचत्रण हुआ ह ैवह र्लू तः र्ानवीय चस्ु ती ह ै तथा र्स्ती का पटु भी ह ै I शिल्प ह ै। ‘गनु ाहों का दवे ता’ कथाकृशत के रूप र्ें अप्रौढ नाटकीय होते हुए भी एक अलग ही स्थान रखता होने के बावजदू भी लोगों के द्वारा सबसे ज्यादा ह ैI यौन भावों का शवस्र्तृ शचत्रण अशधकांि पात्रों पढी गई शप्रयतर आख्यान ह।ैii र्ें झलकता ह।ै ‘गनु ाहों का दवे ता’ र्ध्यर्वगीय उपन्यास की नाशयका ह ैसधु ा और नायक ह ैचन्दर। जीवन की यथाथतम ा, र्ल्ू य–संकट, पाररवाररक सधु ा दजू के चााँद सी र्ासर्ू , शहरनी की भोली संत्रास, र्ानशसक ऊहापोह इत्याशद का शदग्दिनम आाँखों – सी शनष्पाप यवु ती ह।ै उसकी काँुआरी 115 International Journal of Multidisciplinary Research Configuration, ISSN: 2582-8649, Vol. 2, No.1, January 2022 सांसो का दवे ता ह ै– चंदर (चन्र कुर्ार कपरू ) जो आज वकतना सतं ोष है मुझे, वकतनी खुशी है, प्रयाग शवश्वशवद्यालय र् ें प्रथर् श्रणे ी का शवद्याथी मुझे वक सधु ा एक ऐसे घर जा रही है जो इतना रहा ह ै और अब ररसचम स्कााँलर ह।ै चन्दर के ऊपर अच्छा है जो इतना ऊाँचा ‘………….. कहते उसके शसशनयर टीचर डााँक्टर िक्ु ला का बडा स्नहे – कहते चन्दर की आखाँ ें भर आयीं।’ ह ै और वह उनके पररवार का सदस्य सा हो गया जब सधु ा को लडके का फोटो चन्दर शदखलाता ह ै ह।ै डॉक्टर िक्ु ला की एक र्ात्र कन्या सधु ा तब सधु ा कहती ह ैं शक तुम्हारी जबु ान न शहली आठवीं से ही चन्दर के स्नेह – िासन र्ें रही और कैसे? िरर् न आयी तुम्ह?ें हर् शकतना र्ानते थ े अनायास ही उसके अनरु ाग के रंग र्ें रंग गयी ह।ै पापा को, शकतना र्ानते थ े तुम्ह!ें हर्ें यह नहीं चन्दर के साथ हसाँ ते-खेलते , लडते – झगडत,े र्ालूर् था शक आप लोग ऐसा करेंगे। तब चन्दर रीझते चन्दरर्य हो उठी है। चन्दर भी सधु ा को का हाथ तैि र् ें उठा और एक भरपरू तर्ाचा सधु ा बहुत प्यार करता ह।ै वह डॉक्टर िक्ु ला तथा सधु ा के गाल पर प़डा। सधु ा के गाल पर नीली उाँगशलयां के शनश्छल शवश्वास और सहज स्नहे से एक गौरव उभर आयीं। वह स्तब्ध! जैसे पत्थर बन गयी का अनभु व करता हुआ अपन े प्रेर् को बहुत हो।iiiचन्दर ने सधु ा का शसर उठाया और कहा – ऊाँचाई पर रखता ह।ै जाशत व्यवस्था, कुल र्यामदा,, सधु ा हर्ारी तरफ दखे ो – सधु ा ने शसर ऊपर शववाह संबंध आशद के शवषय र् ें डॉक्टर साहब के उठाया। चन्दर बोला हर् दोनों एक दसू रे की शवश्वास परु ाने ह।ै चन्दर के शनबंध को टाइप करान े शजंदगी र् ें क्या इसीशलए आए ह ैं शक एक दसू रे को के शलए िक्ु ला जी पम्र्ी के पास भेजते ह।ैं जहााँ कर्जोर बना द ें या शफर हर् लोगों न े स्वगम की उसकी र्लु ाकात पम्र्ी के पागल भाई बंटी के ऊाँचाईयों पर साथ बैठकर आत्र्ा का सगं ीत सनु ा साथ होती ह।ै पम्र्ी शदखन ेर् ेंबहुत सन्ु दर ह,ै चन्दर शसफम इसशलए शक अपन ेब्याह की िहनाई र्ें बदल उसे दखे ने के बाद सोचने लगता ह ै शक यह द।ें लडकी जो व्यवहार र् ें इतनी सरल और स्पष्ट ह,ै सोने की पहचान आग में होती है न ! लपटों फैिन र् ें नाजकु और िौकीन ह,ै कार् करन े र् ें में अगर उसमें वनखार न आए तो वह सच्चा उतनी ही ज्यादा र्ेहनती और तेज भी ह।ै सधु ा की सोना नही है। हमारा प्यार यवद कवठनाइयों से, बी. ए. की पढाई खत्र् होते – होते उसके शववाह वेदनाओ ंसे, सघं षों से खेले और ववजयी हो की बातें होने लगती ह,ै तब उसकी बआु की बेटी जाये तभी मालूम होगा वक सचमुच मैंने शबनती घर र् ें आती ह।ै िादी के शलए लडके की तुम्हारे जीवन में प्रकाश और बल वदया था। फोटो लाई जाती ह,ै लडके का नार् ह ै कार्रेड अगर तुम सदा मेरी बाहों की सीमा में रहीं कैलाि शर्श्र। चन्दर के शदर्ाग र्ें बरेली की बातें, और मै तुम्हारी पलकों की छांव में रहा और लाठी चाजम सभी कुछ घर्ू गया। चन्दर के र्न र् ें बाहर के सघं षों से डरते रहें तो कायरता है। जो इस वक़्त जान े कैसा लग रहा था। कभी बडा मुझे अच्छा नहीं लगेगा वक दुवनया मेरी सधु ा अचरज होता कभी संतोष होता शक चलो सधु ा के को कायर कहें, बोलो क्या तुम कायर भाग्य की रेखा उसे अच्छी जगह ले गई, शफर कभी कहलाना पसदं करोगी?iv सोचता शक शर्श्र इतने शवशचत्र स्वभाव का ह,ै सधु ा सधु ा को चन्दर सर्झाता ह ै शक अपना ख्याल रख ें की उससे शनभगे ी या नहीं? शफर सोचता, नहीं सधु ा तो सधु ा यह कहती ह ैं शक र्ैं तो दो – चार शदन र् ें भाग्यवान ह।ै इतना अच्छा लडका शर्लना ठीक हो जाऊाँगी! तर्ु घबराओ ं र्त ।र् ैं र्त्ृ य-ु र्शुश्कल था। शबनती उत्सकु ता स े पछू ती ह ै शक िय्या पर भी होऊाँगी तब भी तुम्हारे आदिे पर ‘आप इन्ह ेंजानते ह?ैं ’ हसाँ सकती ह ।ाँ ‘हााँ, वबनती। पलकों में आए आसाँ ू को िादी के सर्य सधु ा िांत एव ं चपु शदखाई दते ी ह।ै रोककर और होठों पर मुस्कान लाने की यंत्रवत सारी रस्र्ें शनभाती रहीं शकन्तु शबदाई के कोवशश करते हुए बोला-‘मैं सोच रहा ह ,ाँ वक सर्य सधु ा चन्दर के परै ों र् ें फूल चढाकर एक 116 International Journal of Multidisciplinary Research Configuration, ISSN: 2582-8649, Vol. 2, No.1, January 2022 पशुडया खोलकर इसर्ें से थोडा सा शसंदरू उन फूलों कैलास भी सधु ा से प्रर्े करता था लेशकन जब र्न पर शछडककर, चन्दर के पााँवों पर शसर रख कर का र्ले न हो तो तन के शर्लने न शर्लने का कोई चपु चाप रोती रही। थोडी दरे के बाद उठी और उन फकम नही पडता ह ैI कैलास को भी सधु ा की शफक्र फूलों को सर्ेटकर अपन े आचाँ ल के छोर पर बााँध थी I घर र्ें जब कैलाि सधु ा से पछू ता ह ै “ तुम्ह ें शलया। डाक्टर साहब, शबनती और बआु तीनों क्या हो गया ह ै सधु ा? ”सधु ा कहती थी - ‘र्झु े शबनती के शववाह के शलए गााँव चले जाते ह ैं इधर सखु रोग हो गया ह।ै ’ सधु ा एक क्षीण सी हसाँ ी हसाँ चंदर पम्र्ी के साथ घर्ू न े शफरने र्ें सर्य शबतान े कर कहती – ‘बहुत सखु र् ें रहन े से ऐसा ही हो लगता ह।ै कुछ शदनों के बाद िक्ु ला जी के लौटन े जाता ह।ै ’कैलाि सधु ा को छोड कर पाटी के कार् के बाद पता चला शक शबनती का ब्याह टूट गया। से चला जाता ह।ै कैलास पाटी का एक सिक्त क्योंशक लडके वालों ने झठू बोला शक लडका कायमकताम भी ह ैI पाटी के कई र्हत्वपणू मकायों को ग्रेजएु ट ह ैलेशकन लडका इटं र फेल था, उसके बाय ें अंजार् दने े के शलए उसको अक्सर बाहर जाना हाथ की अगं शुलयााँ गायब ह।ै, डााँक्टर साहब शबगड पडता ह ैI गए, और शबनती को र्डव े से उठवा शदया। शफर सधु ा अक्सर बीर्ार रहन े लगी थी ,सधु ा की लडाई झगडे के बाद शकसी तरह से तीन फेरों के तशबयत ज्यादा खराब होने के कारण कैलाि उस े बाद शबनती का शववाह टूट जाता ह।ै शदल्ली छोड आता ह ै I चन्दर को भी शदल्ली अब शबनती गर्ु सर्ु सी चपु चाप रहने लगी िक्ु ला बलु ाया जाता ह।ै पहुचाँ ने पर डाक्टर साहब स े जी शबनती को अपन ेसाथ शदल्ली ले जाने की बात चन्दर पछू ता ह ै “ क्या हुआ सधु ा को? ”चन्दर न े सोचन े लगते ह।ैं शबनती की उदासी दखे कर चंदर बहुत ही व्याकुलता और कातरता के स्वर र्ें पछू ा। उससे कहता ह ैर् ैंशकतना व्यशथत ह ाँशबनती! अगर वे कुछ नहीं बोले। चपु चाप चन्दर के कंधे पर हाथ तुर्को भलू से कुछ कह शदया हो तो तर्ु उसका रखते हुए अन्दर आए और भारी स्वर र् ें कहा – इतना बरु ा र्ान गई ंशक दो – तीन र्हीने र्ें भी नहीं “हर्ारी शबशटया गई चंदर !” और आाँस ू छलक भलू ीं। शबनती बोली इसर्ें बरु ा र्ानने की क्या बात आए। सधु ा की हालत दखे कर चदं र अंदर से टूट ह।ै शबनती फीकी हसाँ ी हसाँ कर बोली – ‘आशखर जाता ह ै और खदु को उसकी इस हालत का नारी का भी एक स्वाशभर्ान होता ह,ै र्झु े र्ााँ शजम्र्ेदार र्ान बैठता ह ै I उससे सधु ा की पीडा बचपन से कुचलती रहीं, र्ैंन े दीदी से बढकर तुम्ह ें दखे ी नहीं जाती ह,ै लेशकन वह बेबस और लाचार र्ाना। तुर् भी ठोकरें र्ारने से बाज नहीं आए। ह ै कुछ नही कर सकता थाI िायद अब बहुत दरे दशुनयां र्झु ेकेवल कुचलती ही रहीं ह।ैं हो चकु ी थी I शजस शदन सधु ा को सबु ह आना था, उस रात को सधु ा चन्दर को वबनती से वववाह के वलए चंदर का र्न शबल्कुल बेकाब ू – सा हो रहा था। राजी करने लगती है। सहसा उसकी आखाँ ों के लगता था शक र्न कुछ भी सोचन े – सर्झने को सामने अंधेरा छा जाता है – “ भागों, चन्दर! तैयार ही नहीं हो। चन्दर उस शदन एक भी पल तुम्हारे पीछे कौन खड़ा है? ”चन्दर घबराकर अकेला न रहकर भीड – भाड र्ें खो जाना चाहता खड़ा हो जाता है – पीछे कोई भी नहीं था। था……. सधु ा चीख रही थी सभी लोग पास आकर खड़े हो जाते हैं। सधु ा का वसर चन्दर की गोद में लुढ़क गया – वबनती को नसम ने सधु ा जब घर पहुचाँ ती ह ैतो चन्दर सधु ा को दखे ता सम्भाला और डाक्टर शुक्ला सजमन के बगाँ ले ह ै शक सधु ा उजड चकु ी थी। उसका रस र्र चकु ा की ओर दौड़े…………. घड़ी ने टन टन था वह केवल अपने रूप, यौवन चंचलता और करके दो बजाये………… शर्ठास की एक जद मछाया र्ात्र रह गयी थी। उसके सर्ीक्षा – चेहरे की खिु ी और रौनक जैसे कहीं खो गई हो I 117 International Journal of Multidisciplinary Research Configuration, ISSN: 2582-8649, Vol. 2, No.1, January 2022 “ इस प्रकार हर् कह सकते ह ैं शक ‘ गनु ाहों का शवशवधता ही इस उपन्यास की उपलशब्ध कही जा दवे ता ’ प्रर्े का नया सर्ाजिास्त्र ह।ै इस िास्त्र का सकती ह।ैvii रूप घोर आक्रार्क ह ैं शजसन े परम्परागत शववाह - “गनु ाहों का दवे ता ”र्ें प्रर्े और शववाह संबंधी व्यवस्था पर करारी चोट की ह।ै उपन्यास के वैयशक्तक कथा – संशहता प्राचीन और आधशुनक आरम्भ र्ें ही शर्स शडक्रीज ने एक र्ाशर्मक बात जीवन तथा भारतीय और शवदिे ी धारणाओ ं को कही थी – ‘िादी अपन े को शदया जान े वाला अपने र् ेंसर्ेटती सी नजर आती ह।ै इसर्ें पम्र्ी के सबसे बडा धोखा ह।ै ’ऐसे धोखे की ओर कच्ची र्ाध्यर् स े पशिर् का प्रर्े शचशत्रत शकया गया ह,ै आय ु के भोले – भाले भावकु नादान प्रेर्ी शजसर्ें सशुवचाररत अवलोकन, ताशकमकता और वासनारशहत प्रेर् के शलए परूे उल्लास के साथ औपचाररकता ह।ै इसके शवपरीत सधु ा के प्रेर् र् ें बढते तो ह,ैं परंतु एक सीर्ा पर पहुचाँ कर जो भारतीयता का शबम्ब शदखाई दते ा ह,ै शजसर् ें प्रेर् चतुशदकम शवरोह – शवस्फोट होता है, वही यथाथ म शकया नहीं जाता ह ै बशल्क वह खदु ही अनायास का केन्रीय र्र्म होता ह।ै ” v ही शवकशसत हो जाता ह।ै प्रेर् एक सच्ची अनभु शूत भारती जी न े सहज और वास्तशवक रूप र्ें प्रर्े को ह ै , यह शवकार और वासना से रशहत होता ह।ै दिामया ह ै I जो वास्तव र्ें हर एक शकिोर की पम्र्ी की र्खु र वासना का शवरोध वास्तव र् ेंगहरी जीवन र्ें आई एक लहर की तरह ह ै ,कोई उन स्वीकृशत ह।ै इधर सधु ा के र्ौन प्रर्े र्ें वासना का लहरों र्ें तैर कर पार लग जाता है, तो कोई डूब कोई भी अशस्तत्व नहीं ह।ै सेक्स प्रेर् और शववाह जाता ह,ैकोई केवल शकनारे पर बैठ कर अपन े के संबंध र् ें पम्र्ी के साथ चन्दर के साथ जो कुछ अधरू े ख्वाब का र्ातर् र्नाता हIै प्रेर् हर शकसी भी बात – चीत ह ै उससे आधशुनक नारी का के जीवन र् ें जरूर दस्तक दते ा ह ै I ऐसा लगता ह ै दृशष्टकोण प्रस्तुत होता ह।ै प्रेर् की चाह ें शजतनी भी जैसे चंदर को स्वयं भारती जी न े शजया और भोगा व्याख्याएं हो, लगता ह ै जैसे शक वह हर प्रकार स े ह ैI शववाह का तीव्र शवरोध ही हो जाता ह।ै चन्दर हर् कह सकते ह ैं शक ‘गनु ाहों का दवे ता ’प्रेर् के अवसर होन े पर भी अपनी कोई शटप्पणी नहीं एक सहज र्ानवीय रूप को प्रस्तुत कराता ह ै करता ह ै लेशकन अपन े अन्दर की पीडा से संघषम शजसका सर्शुचत वगीकरण शहन्दी के रीशतिास्त्र र् ें अवश्य करता रहता ह ै ह।ैं वह पहली बार र्र्ामहत नहीं हुआ ह।ै साथ ही नयी संवदे नाओ ं का जो होकर कहता ह ै – प्रेर् र् ें एक न हो पान े की पीडा शचत्रण हुआ ह,ै वह र्लू तः र्ानवीय ह।ै vi “गनु ाहों तो ह ैलेशकन कंुठा नहीं ह।ै यह आदिमवादी प्रेर् ह।ै का दवे ता ” एक आदिोन्र्खु यथाथमवादी इस उपन्यास न े बीसवीं सदी के हर्ारे र्ध्यर्वगीय सार्ाशजक उपन्यास ह।ै शजसर् ें भारती जी न े सर्ाज की रूशढगत नशैतक व्यवस्था पर एव ं र्ध्यर्वगीय सर्ाज र्ें व्याप्त सर्स्याओ ंकी ओर कुरीशतयों पर दृशष्टपात शकया ह।ै आज की यवु ा हर्ारा ध्यान आकशषमत करन े के शलए अलग - पीढी पंग ु एव ं कायर ह।ै शदिाहीन ह ै और शनणयम अलग पात्रों के र्ाध्यर् से कहानी को सन्ु दर एव ं लेन े र् ें असर्थम ह।ै यही सर्थमता ही उसके जीवन र्नोरर् ढगं से शनरूशपत शकया ह।ै उपन्यास के सभी र्ें अनेक शवसंगशतयााँ पैदा करती ह,ै शजसका पात्र र्ध्यर् वगम से ही संबंशधत ह ै तथा संबंधों को उदाहरण सधु ा और चंदर ह।ै इस प्रकार भारती जी अपने – अपने ढंग स े बनाए हुए ह।ैं चंदर (चंर का यह उपन्यास यवु ा र्ानशसकता को अत्यतं कुर्ार कपरू ) का तथा सधु ा का पारस्पररक संबंध सक्ष्ू र्ता से शचशत्रत करता ह।ै हर्ारे सार्ाशजक उपन्यास के िरूु से लेकर अंत तक बना रहता ह।ै बंधन हर्को अपन ेर्न के भावों को र्खु ररत करन े लेखक न े परुु ष और नारी के पारस्पररक बाह्य की इजाजत नहीं दते े ह ैI लेशकन कहीं न कहीं वह संबन्धों के साथ ही उनके अतं स संबन्धों को भी प्रेर् हर्ारे पररवार द्वारा बांधे गए शववाह बंधन को उजागर करने का प्रयास शकया ह।ै परुु ष – स्वभाव प्रभाशवत जरूर करता ह ै क्योंशक प्रर्े एक साशत्वक की शवशभन्नता पर कर् और नारी – स्वभाव की अनभु शूत ह ैI जो र्न के शकसी कोने र्ें अदृश्य रूप 118 International Journal of Multidisciplinary Research Configuration, ISSN: 2582-8649, Vol. 2, No.1, January 2022 से हर्ेिा शवराजर्ान होती ह ै ,हर् प्रेर् को दफन जरूर करन े की कोशिि करते ह ै लेशकन वह न शर्टन े वाली एक पशवत्र अनभु शूत होती ह ै ,शजसका िरीर स ेसंबंध न होकर हर्ारी आत्र्ा से होता ह ैI जो शववाह के ररश्ते को भी प्रभाशवत शकए शबना नहीं रहता ह ैI सदं भम: i कंचन बाला रार्टेके,धर्मवीर भारती के कथा – साशहत्य का अनिु ीलन ii भारती पष्ुपा ,धर्मवीर भारती की साशहत्य-साधना ,प ृ॰ सं॰ 40 पैरा ॰ 2 iii धर्मवीर भारती ,गनु ाहों का दवे ता प ृ॰ सं॰ 100 पैरा ॰ iv धर्मवीर भारती ,गनु ाहों का दवे ता प ृ॰ सं॰ 101 पैरा ॰ ३ v भारती पष्ुपा ,धर्मवीर भारती की साशहत्य – साधना ,नई शदल्ली ,प ृ॰ सं॰ 195 पैरा ॰. vi चतुवेदी रार्स्वरुप ,सर्कालीन शहन्दी साशहत्य – शवशवध पररदृश्य ,प॰ृ सं॰ 89 परै ा ॰ 2 vii राजपाल हुकुर्चंद ,धर्मवीर भारती साशहत्य के शवशवध आयार् , प॰ृ सं॰ 134 पैरा ॰ 2 119