वो एक सुनसान सी हवेली थी जहाँ रात के अंधेरे में सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा लग रहा था, मानो वो मौत का सन्नाटा हो। बाहर आती ठंडी हवा सायं-सायं किए जा रही थी।
तभी वहाँ किसी की पदचाप गूंजी। साथ ही एक लकड़ी की "ठक-ठक" की आवाज भी गूंज उठी। एक लड़की उस हवेली के अंदर आई। उसके हाथ में एक सफेद लकड़ी थी, और दूसरे हाथ से वो मानो अंधेरे को टटोल रही थी।
उसने आवाज़ दी "प्रवीण? प्रवीण कहाँ हो तुम? क्या दोबारा से लाईट चली गई? ये म्यूजिक क्यों ऑफ हो गया है? प्रवीण?"
कोई आवाज नहीं आई। सब कुछ चुप था उस हवेली में सिवाय उस लड़की के चलने के।
वो लड़की बीच में आकर खड़ी हो गई। उसने खुद से कहा "ये प्रवीण भी ना! उसे अंकल ने मेरे लिए और हवेली की देखभाल करने के लिए रखा है लेकिन ये लड़का हमेशा वक्त पर गायब हो जाता है।"
इतना कहकर उसने सिर हिला दिया और फिर एक बार फिर आवाज दी "प्रवीण?"
अचानक से दो कदम उस लड़की के पीछे से उभरे। वो बिल्कुल बिना कोई आवाज किए लड़की के पास जाने लगे। लड़की लकड़ी को टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी।
अचानक से उस पीछे से आ रहे इंसान के हाथ में एक खंजर उभरा। वो एक चमकता हुआ तेज धारी खंजर था।