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Shrimad Valmiki Ramayana - श्रीमद वाल्मीकि रामायण (Hindi Edition) PDF

2621 Pages·2017·46.539 MB·Hindi
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Preview Shrimad Valmiki Ramayana - श्रीमद वाल्मीकि रामायण (Hindi Edition)

�काशक एवं मु�क — गीता�ेस गोरखपुर २७ ००५ , — 3 गो�ब�भवन काया�लय कोलकाता का सं�ान ( - , ) फोन ०५५१ २३३४७२१ २३३१२५० फै � ०५५१ २३३६९९७ : ( ) , ; : ( ) e-mail : [email protected] website : www.gitapress.org न� �नवेदन रामाय रामभ�ाय रामच�ाय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नम ॥ : : रामं रामानुजं सीतां भरतं भरतानुजम्। सु�ीवं वायुसूनुं च �णमा�म पुन पुन ॥ : : वेदवे�े परे पुं�स जाते दशरथा�जे। वेद: �ाचेतसादासीत ् सा�ाद ्रामायणा�ना॥ वेद �जस परमत�का वण�न करते ह� वही �ीम�ारायणत� �ीम�ामायणम� �ीराम�पसे , �न��पत ह।ै वेदवे� परमपु�षो�मके दशरथन�न �ीरामके �पम� अवतीण� होनेपर सा�ात् वेद ही �ीवा�ी�कके मुखसे �ीरामायण�पम� �कट �ए ऐसी आ��क�क� �चरकालसे मा�ता , ह।ै इस�लये �ीम�ा�ीक�य रामायणक� वेदतु� ही ��त�ा ह।ै य� भी मह�ष� वा�ी�क आ�दक�व ह� अत �व�के सम� क�वय�के गु� ह।� उनका आ�दका� �ीम�ा�ीक�य , : ‘ ’ रामायण भूतलका �थम का� ह।ै वह सभीके �लये पू� व�ु ह।ै भारतके �लये तो वह परम गौरवक� व�ु है और देशक� स�ी ब�मू� रा�ीय �न�ध ह।ै इस नाते भी वह सबके �लये सं�ह पठन मनन एवं �वण करनेक� व�ु ह।ै इसका एक एक अ�र महापातकका नाश , , - करनेवाला है — एकै कम�रं पुंसां महापातकनाशनम्। यह सम� का��का बीज है — का�बीजं सनातनम्। ‘ ’ बृह�म�० १ । ३० । ४७ ( ) �ी�ासदेवा�द सभी क�वय�ने इसीका अ�यन कर पुराण महाभारता�दका �नमा�ण , �कया।१ बृह�म�पुराण म� यह बात �व�ारसे ��तपा�दत ह।ै �ी�ासजीने अनेक पुराण�म� ‘ ’ रामायणका माहा� गाया ह।ै ��पुराणका रामायणमाहा� तो इस ��के आर�म� �दया ही है क◌�इ �छट पुट माहा� अलग भी ह।� यह भी ��स� है �क �ासजीने यु�ध��रके , - अनुरोधसे एक �ा�ा वा�ी�करामायणपर �लखी थी और उसक� एक ह��ल�खत ��त अब भी �ा� ह।ै २ इसका नाम रामायणता�य�दी�पका ह।ै इसका उ�ेख दीवानबहादरु ‘ ’ रामशा�ीने अपनी पु�क �डीज इन रामायण के ��तीय ख�म� �कया ह।ै यह पु�क ‘ ’ १९४४ ◌�इ०म� बड़ौदासे �का�शत ह।ै �ोणपव�के १४३ । ६६ ६७ �ोक�म� मह�ष� वा�ी�कके - यु�का�के ८१ । २८ को नामो�ेखपूव�क �ोकका हवाला �दया गया ह।ै ३ अ��पुराण के ‘ ’ ५ से १३ तकके अ�ाय�म� वा�ी�क के नामो�ेखपूव�क रामायणसारका वण�न ह।ै ‘ ’ ग�डपुराण पूव�ख�के १४३ व� अ�ायम� भी ठीक इ�� �ोक�म� रामायणसार कथन ह।ै इसी , �कार ह�रवंश �व�ुपव� ९३ । ६ ३३ म� भी यदवु ं�शय��ारा वा�ी�करामायणके नाटक ( — ) खेलनेका उ�ेख है — रामायणं महाका�मु��� नाटकं कृ तम्। �ी�ासदेवजीने वा�ी�कक� जीवनी भी बड़ी ��ासे ��पुराण वै�वख� ‘ ’ , वैशाखमाहा� १७ से २० अ�ाय�तक क�ाण सं० ��पुराणा� पृ० ३७४ से ३८१ तक (‘ ’ ), आव�ख� अव�ी�े�माहा�के २४ व� अ�ायम� क�ाण सं��� ��पुराणा� पृ० (‘ ’ ७०८ ९ �भासख�के २७८ व� अ�ायम� सं० ��पुराणा� पृ० १०२५ २७ तथा - ), ( — ) अ�ा�रामायणके अयो�ाका�म� ६ । ६४ ९२ वण�न �कया ह।ै म�पुराण १२ । ६१ म� ( — ) वे इ�� भाग�वस�म से �रण करते ह४� और भागवत ६ । १८ । ५ म� महायोगी से। ‘ ’ ‘ ’ इसी �कार क�वकु ल�तलक का�लदासने रघुवंशम� आ�दक�वको दो बार �रण �कया ह।ै एक तो क�व कु शे�ाहरणाय यात । �नषाद�व�ा�जदश�नो� �ोक �माप�त —‘ : : : - य� शोक ५॥ १४ । ७० इस �ोकम� दसू रे २ । ४ के पूव�सू�र�भ म�। भवभू�तको : ’ ( ) , ‘ :’ क�णरसका आचाय� माना गया है �क� तु हम देखते ह� �क उ�� इसक� �श�ा आ�दक�वसे ही , �मली ह।ै वे भी उ�ररामच�रतके दसू रे अ�म� वा�ी�कपा�ा��दह पय�टा�म मुनय�मेव �ह ‘ ’ ‘ पुराण��वा�दनं �ाचेतसमृ�ष� उपासते आ�दसे उ��का �रण करते ह।� सुभा�षतप��त ..... ’ ‘ ’ के �नमा�ता शा��धर उनके इस ऋणको �� �� करते �ए �लखते ह� — कवी�ं नौ�म वा�ी�क� य� रामायणीकथाम्। च��का�मव �च��� चकोरा इव साधव ॥ : इसी तरह महाक�व भास आचाय� श�र रामानुजा�द सभी स�दायाचाय� राजा भोज , , , आ�द परवत� �व�ान�से लेकर �ह�दीसा�ह�के �ाण गो�ामी तुलसीदासजीतकने बंदउँ मु�न ‘ पदकंजुरामायनजे�ह� �नरमयउ जानआ�दक�बनाम�तापू बालमी�कभे��समाना ’ ‘ ’, ‘ ’ रामच�रतमानस जहाँबालमी�कभए�ाधत�मु�न�दुसाधु मरामरा जप��सखसु�न�र�ष ( ), ‘ ’ ‘ ’ ‘ सातक� क�वतावली उ�रका� १३८ से १४० कहत मुनीस महसे महातम उलटे सीधे ’ ( , ), ‘ नामको म�हमाउलटेनामक�मु�न�कयो�करातो। �वनयप��का१५६ १५१ उलटाजपत ’ ‘ ’ ( , ), ‘ कोलतेभएऋ�षराव बरवैरामा०५४ राम�बहाइमराजपते�बगरीसुधरीक�बको�कल� ’ ( ), ‘ क� क�व०७।८८ इ�ा�द पद�से इनका बार बार ��ापूव�क �रण �कया है कृ त�ता ’ ( ) - ; �ापन क� ह।ै सं��� जीवनी मह�ष� वा�ी�कजीको कु छ लोग �न� जा�तका बतलाते ह।� पर वा�ी�करामायण ७ । ९६ । १९ ७। ९३ । १७ तथा अ�ा�रामायण ७ । ७ । ३१ म� इ��ने �यं अपनेको �चेताका , पु� कहा ह।ै ६ मनु�ृ�त १ । ३५ म� �चेतसं व�स�ं च भृगुं नारदमेव च �चेताको व�स� ‘ ’ , नारद पुल� क�व आ�दका भा◌�इ �लखा ह।ै ��पुराणके वैशाखमाहा�म� इ�� , , ज�ा�रका �ाध बतलाया ह।ै इससे �स� है �क ज�ा�रम� ये �ाध थे। �ाध ज�के पहले - भी �� नामके �ीव�गो�ीय �ा�ण थे। �ाध ज�म� श� ऋ�षके स��से रामनामके - , जपसे ये दसू रे ज�म� ४ अ��शमा� मता�रसे र�ाकर �ए। वहाँ भी �ाध�के स�से कु छ ( ) ‘ ’ ( ) �दन �ा�न सं�ारवश �ाध कम�म� लगे। �फर स��ष�य�के स�ंगसे मरा मरा जपकर - , - — बाँबी पड़नेसे वा�ी�क नामसे �ात �ए और वा�ी�क रामायणक� रचना क�। क�ाण - (‘ ’ सं० ��पुराणा� पृ० ३८१ ७०९ १०२४ बंगलाके कृ ��वासरामायण मानस अ�ा�रामा० २ ; ; ) , , । ६ । ६४ से ९२ आन�रामायण रा�का� १४ । २१ ४९ भ�व�पुराण ��तसग�० ४। १० म� , — , भी यह कथा थोड़े हरे फे रसे �� ह।ै गो�ामी तुलसीदासजीने व�ुत यह कथा �नराधार नह� - : �लखी। अतएव इ�� नीच जा�तका मानना सव�था �ममूलक ह।ै �ाचीन सं�ृ त टीकाएँ वा�ी�करामायणपर अग�णत �ाचीन टीकाएँ ह� यथा १ कतक टीका इसका , — ( नागोजीभ� तथा गो�व� राजा�दने ब�त उ�ेख �कया है २ नागोजीभ�क� �तलक या - ), — रामा�भरामी �ा�ा ३ गो�व�राजक� भूषण टीका ४ �शवसहायक� रामायण �शरोम�ण , — , — - �ा�ा ये पूव�� तीन� टीकाएँ गुजराती ����ट� �ेस ब�◌�इसे एकम� ही छपी ह।� ५ , ( ) — माह�े रतीथ�क� तीथ��ा�ा या त�दीप ६ क�ाल रामानुजक� रामानुजीय�ा�ा ये , — ; ( टीकाएँ व�कटे�र �ेस ब�◌�इसे छपी ह।� ७ वरदराजकृ त �ववेक�तलक ८ ��कराज ) — , — मखानीक� धमा�कू त �ा�ा यह ख�श म�ास एवं �ीर��े छपी है और ९ - ( : ) — रामान�तीथ�क� रामायणकू ट �ा�ा। इसके अ�त�र� चतुरथ�दी�पका - , रामायण�वरोधप�रहार रामायणसेतु ता�य�तर�ण �ृ�ारसुधाकर रामायणस��ब� मनोरमा , , , , आ�द अनेक टीकाएँ ह।� री�ड�� इन रामायण के अनुसार इतनी टीकाएँ और ह� १ ‘ ’ — अहोबलक� वा�ी�क �दय त�न�ोक� �ा�ा उनके �श�क� �वरोधभ��नी टीका ‘ - ’ ( ) , , माधवाचाय�क� रामायणता�य��नण�य �ा�ा �ीअ�य दी��ते�क� भी इसी नामक� एक - , अ� �ा�ा �जसम� उ��ने रामायणको �शवपरक �स� �कया है �बालमुकु �सू�रक� ( ), रामायणभूषण �ा�ा एवं �ीरामभ�ा�मक� सुबो�धनी टीका। डा�र एम० कृ �माचारीने - अपनी पु�क �ह��ी ऑफ �ा�सकल सं�ृ त �लटरेचर म� क◌�इ ऐसी टीका�का उ�ेख ‘ ’ �कया है �जनके लेखक�का पता नह� ह।ै उदाहरणाथ� अमृतकतक रामायणसारदी�पका , — , , गु�बाला �च�र��नी �व��नोर��नी आ�द। उ��ने वरदराजाचाय�के रामायणसारसं�ह , , देवरामभ�क� �वषयपदाथ��ा�ा नृ�स�ह शा�ीक� क�व��का व�कटाचाय�क� , , रामायणाथ��का�शका व�कटाचाय�के रामायण कथा�वमश� आ�द �ा�ा���का भी उ�ेख , - �कया ह।ै इसके अ�त�र� क◌�इ टीकाएँ म��वलास वाली ��तम� सं�हीत ह।� �ात ये सब ‘ ’ तो सं�ृ त �ा�ाएँ ह।� अ�ात सं�ृ त �ा�ा� �ह�ीके अनेकानेक �ैत अ�ैत शु�ा�ैत , , , , �व�श�ा�ैता�द मतावल��य� आय�समाजक� �ा�ा� बंगला मराठी गुजराती आ�द , , , , �व�भ� �ा�ीय भाषा� तथा �� च अं�ेजी आ�द अ� �वदेशी भाषा�म� �कये गये अनुवाद , , टीका �ट��णय�क� तो यहाँ को◌�इ बात ही नह� छेड़नी है ���क उनका अ� ही नह� होना - ; ह।ै रामायणके का�गुण अ� �वशेषताएँ , कु छ लोग�ने तो यहाँतक कहा है �क रामायणके ल�ण�के आधारपर ही द�ी आ�दने का��क� प�रभाषा बतलायी। ��कराज मखानीने सु�रका�क� �ा�ाम� �ाय सभी : �ोक�को अलंकार रसा�दयु� मानकर का�नामक� साथ�कता �दखलायी ह।ै वा�वम� बात , भी ऐसी ही ह।ै सु�रका० ५वाँ सग� तो �नता� सु�र है ही। �ीमखानीने सभीके उदाहरण भी �दये ह।� यह बड़े आ�य�क� बात है �क आ�दक�वने �कसी �ाचीन का�को �बना ही देखे �कसी , ��से �बना ही सहारा �लये सव��म का�का �नमा�ण �कया। इनका �ाकृ �तक �च�ण तो सु�र है ही संवाद सवा��धक सु�र ह।ै हनुमा�ीक� वाता�लापकु शलता सव�� देखते बनती ह।ै , �ीरामक� ��तपादनशैली दशरथजीक� संभाषणप��त अयो�ाका� २रा सग� �कम�धकं , , ( ) कह� कह� रावणका भी कथन लंकाका� १६वाँ सग� ब�त सु�र ह।ै इ��ने �ो�तषशा�को - ( ) भी परम �माण माना ह।ै ��जटाके �� �ीरामका या�ाका�लक मु�त��वचार �वभीषण�ारा , , लंकाके अपशकु न�का ��तपादन लंकाका� १०वाँ सग� आ�द �ो�त�व��ानके �ापक तथा ( ) समथ�क ह।� �ीराम जब अयो�ासे चलते ह� तो नौ �ह एक� हो जाते ह७� इससे लंकायु� — होता ह।ै दशरथजी �ीरामसे �ो�त�षय��ारा अपने अ�न� फलादेशक� बात बतलाते ह।� अयो�ा० ४ । १८ ८। यु�का� १०२ । ३२ ३४ के �ोक�म� रावणमरणके समयक� ( ) — �ह���त भी �ेय ह।ै यु�का� ९१व� सग�म� आयुव�द�व�ानक� बात� ह।� यु� १८ व� सग� तथा ६३ । २ से २५ �ोकतक राजनी�तक� अ�� सारभूत अ�तु बात� ह।� यु�का� ७३ । २४ २८ म� — त�शा�क� भी ���याएँ ह।� इसम� रावण तथा मेघनादको भारी ता��क �दखलाया गया ह।ै मेघनादक� सब �वजय त�मूलक ह।ै जब वह जी�वत कृ �छागक� ब�ल देता है तब , त�का�नके तु� अ��क� द��णावत� �शखाएँ उसे �वजय सू�चत करती ह� — �द��णावत��शख��का�नस��भ । ६ । ७३। २३ । रावण भी भारी ता��क ह।ै ‘ : ’ ( ) उसक� �जापर ता��कका �च� नर�शरकपाल मनु�क� खोपड़ीका �च� था। ६ । १०० ( ) — ( । १४ । �क� तु उसके पराभव आ�द�ारा ऋ�ष वाममाग�के इन ब�ल मांस सुरा�द ��या�क� ) - - असमीचीनता �द�श�त करते ह� गो�ामी तुलसीदासजीने भी त�ज�ु�तपंथबाममगचलह� ( ‘ ,’ अयो�ा० १६८। ७ ८ कौलकामबसकृपन�बमूढा लंका० ३१ । २ आ�दसे इसी बातका ( - ), ‘ ’ ( ) समथ�न �कया है । इस तरह हम� मह�ष�क� ���म� �ौ�तष त� आयुव�द शकु न आ�द ) , , , शा��क� �ाचीनता एवं समीचीनता �ात होती ह।ै व�ुत यही परम आ��कक� ��� होती : ह।ै धम�शा�के �लये तो यह �� परम �माण है ही अ� ऐ�तहा�सक कथाएँ भी ब�त ह� , , अथ�शा�क� भी पया�� साम�ी ह।ै �वहार तथा आचारक� भी बात� ह� कु शलमाग�का भी , �दश�न ह।ै प�व� दाश��नकता मह�ष� वा�ी�कक� अ�तु क�वता एवं अ�ा� मह�ाम� उनक� तप�ा ही हते ु ह।ै इसम� वा�ी�करामायण ही सा�ी ह।ै तप �ा�ाय�नरतं तप�ी वा��दांवरम् से इस का�का ‘ : ’ तप श�से ही आर� होता है और �थम अधा�लीम� ही दो बार तप श� आया और ‘ ’ ‘ ’ तप�ी श��ारा मह�ष�ने एक �कारसे अपनी जीवनी भी �लख दी। तप�ारा ही ��ाजीका ‘ ’ उ��ने सा�ात् �कया रामायणक� �द�का�ताका आशीवा�द �लया और रामच�र�का दश�न , �कया। बादम� �व�ा�म�के �व�च� तपका वण�न ग�ाजीके आगमनम� भगीरथक� अ�तु तप�ा , , चूली ऋ�षक� तप�ा भृगुक� तप�ा आ�दका भी वण�न ह।ै इनके मतसे �गा��द सभी , सुखभोग�का हते ु तप ह।ै �कम�धकं रावणा�दके रा� सुख श�� आयु आ�दका मूल भी तप ; , , , ह।ै �ीराम तो शु� तप�ी ह।� वे तप��य�के आ�मम� �वेश करते ह।� वहाँ वे वैखानस , बाल�ख� स��ाल मरी�चप के वल च��करण पान करनेवाले प�ाहारी उ��क सदा , , ( ), , ( क�तक पानीम� डूबकर तप�ा करनेवाले प�ा��सेवी वायुभ�ी जलभ�ी ), , , , ���लशायी आकाश�नलयी एवं ऊ��वासी पव�त �शखर वृ� मचान आ�दपर रहनेवाले , ( - , , ) तप��य�को देखते ह।� ये सभी जपम� लीन थे। अर�का� ६ठा सग� इनका जप स�वत ( ) : �ीराम म� रहा हो ���क इनम�से अ�धकांश �ीरामको देखते ही योगा��म� शरीर छोड़ देते ‘ ’ , ह।� व�ुत का��व�धसे का�ास��त मधुर वाणीम� वा�ी�कका यही दाश��नक उपदेश ह।ै : उनका मूल त� इस �कार प�व�तापूव�क रहकर तपोऽनु�ान करते �ए ◌�इ�रक� आराधना करना एवं अधम�से सदा दरू रहना ही ह।ै �ीरामक� पर��ता कु छ लोग रामायणम� नरच�र� मानते ह� और �ीरामके ◌�इ�रता��तपादक दे�खये ( , बालका� १५ से १८ सग� पुन ७६ । १७ १९ अयो�ा० १ । ७ अर�० ३ । ३७ सु�र० २५ , : , , , , । २७ ३१ ५१ । ३८ यु�० ५९। ११० ९५ । २५ पूरा १११ तथा ११७ वाँ सग� ११९ । १८ ११९ । , ; , ; ; , ३२ म� सु�� �� श� उ�रका० ८ । २६ ५१। १२ २२ १०४ । ४ आ�द। ब� तथा प��मी ‘ ’ , — ; शाखाम� भी ये सब �ोक ह� ब�� कह� कह� तो इससे भी अ�धक ह।� हजार� वचन�को , - ) ���� मानते ह।� �क� तु �ानसे पढ़नेपर �ीरामक� ◌�इ�रता सव�� दीखती ह।ै ग�ीर �च�नके बाद तो ��ेक �ोक ही �ीरामक� अ�च� श��म�ा लोको�र धम���यता , , आ��तव�लता एवं ◌�इ�रताका ��तपादक दीखता ह।ै �वभीषणशरणाग�तके समय य��प को◌�इ भी ऐ�य� �दश�क वचन नह� आया पर �ीरामके अ��तम माद�व कपोतके , , आ�त�स�ारके उदाहरण देने परम�ष� क�ुक� गाथा पढ़ने एवं अपने शरणम� आये सम� , �ा�णय�को* सम� �ा�णय�स े अभयदान देनेके �ाभा�वक �नयमको घो�षत करनेके बाद ��तवादी सु�ीवको �ववश होकर कहना ही पड़ा �क धम�� लोकनाथ�के �शरोम�ण आपके ‘ ! ! इस कथनम� को◌�इ आ�य� नह� है ���क आप महान् श��शाली एवं स�थपर आ�ढ़ ह� ; — �कम� �च�ं धम�� लोकनाथ�शखामणे। यत् �माय� �भाषेथा स�वान् स�थे ��त ॥ : : ६ । १८ । ३६ ( )

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