Description:जब मैं आध्यात्मिक उपन्यास कृष्ण एक रहरय लिख रहा था, तब उस पूरे काल में मैंने यह अनुभव किया कि मैं बाँसुरी हो गया हूँ । बाँसुरी होने की आत्मा को मैंने दिव्य रूप में अनुभव किया । मैंनै देखा कि उसमें से जो संगीत झर रहा है, वह आ तो मुझमें से होकर रहा है, किंतु मैं भली- भांति जानता हूँ कि उसमें बहती प्राणवायु मेरी नहीं है। जिन अधरों (होंठों) पर यह बाँसुरी रखी है, उसके छिद्रों पर जो अँगुलियों नृत्य कर रही हैं और शब्दों का जो महारास हो रहा है-यह सब कृष्ण की विराट् ऊर्जा से अनुप्राणित है । इस उपन्यास के संगीत ने मेरी आत्मा को मंत्रमुग्ध कर दिया । मधुराधिपति भगवान् श्रीकृष्ण का सबकुछ मधुर है । मैं उसके प्रति अहोभावपूर्ण हूँ कि उसने मुझे चुना ।इस उपन्यास का आधार कृष्ण और सुदामा की सुप्रसिद्ध लोककथा है । इस कथा में मैंने अपने जीवन के अनुभवों को समोने का आनंद लिया है । सुदामा को यादव शिरोमणि योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के पास उनकी पत्नी ने भेजा तो किसी और उद्देश्य से था, किंतु द्वारका पहुँचकर सुदामा ने देखा कि जिस कृष्ण को वे अपना सामान्य मित्र मानते थे, वह तो करुणा, प्रेम, न्याय, सत्य, ज्ञान और रस की पराकाष्ठा हैं । सुदामा शेष सब भूलकर कृष्ण की गहराई की थाह लेने में जुट जाते हैं? अपने इस खोजी अभियान में वे कृष्ण का पार तो पा नहीं पाते, अपितु यह जान जाते हैं कि श्रीकृष्ण उनके प्रत्येक श्वास में आ बसे हैं और वे पूर्णत: कृष्णमय हो चुके हैं । श्रीकृष्ण के साथ बिताए गए समय में वे यह देखते हैं कि कृष्ण उनके मन के उठनेवाले अनेक जटिल प्रश्नों के मौलिक उत्तर देकर उनकी प्यास बुझा रहे हैं । अंतत: सुदामा नतमस्तक हो यह स्वीकार कर लेते हैं कि वे कृष्ण के विराट् रूप को बुद्धि के द्वारा तो जान ही नहीं सकते, किंतु उनके प्रेम की गंगा में नित स्नान कर आनंदित तो हो ही सकते हैं ।