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Krantidoot Review by Ajay Chandel Author Dr.Manish Shrivastava PDF

2022·0.1 MB·Hindi
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क्रांतिदिू पस्ु िक समीक्षर भाग-१,२,३ बहुि कम पस्ु िकें होिी ह,ैं जो एक शांख लर में आिी ह ैं और परू ी शांख लर के तलए परठकों कर उत्सरह बनर रहिर ह।ै डॉ. मनीष श्रीवरस्िव की क्रांतिदिू ऐसी एक पस्ु िक शांख लर ह ै तजसके तलए परठकों कर उत्सरह िीन भरग आने के बरद भी बनर हुआ ह।ै एक भरग पढ़कर समरप्त नहीं होिर और अगले भरग के प्रति उत्सकु िर तववश कर दिे ी ह ैपस्ु िक के आने के पहले तदन ही उसे मांगर लेने के तलए। अब िक क्रांतिदिू के िीन भरग आ चकु े ह।ैं पहलर भरग झराँसी फरइल्स के नरम से आयर, दसू रर करशी और िीसरर तमत्रमेलर। झराँसी फरईल्स खोलिे ही आप पस्ु िक के सरथ जड़ु जरिे ह ैं जब आपको पिर चलिर ह ै तक लेखक उस पररवरर से ह ैं तजसके चांद्रशेखर आज़रद से सम्बन्ध रह े थे। पस्ु िक ख़त्म करिे हुए आप स्वयां को चांद्रशेखर आज़रद की जीवन की कई सनु ी अनसनु ी घटनरओ ांसे जोड़ लेिे ह।ैं ऐसर लगिर ह ैआप वहीं सिररर नदी के तकनररे बैठे हुए आज़रद की गतितवतधयरां दखे रह े ह।ैं आपके घर में कढ़ी चरवल पकिे ह ैं िो आप अपन े बच्चों स े कहने से नहीं रोक परि े तक आज़रद को यही सबसे पसांद थर। तफर ऐसे ऐसे परत्र आपके सरमने से तनकल जरिे ह ैंतजनकर नरम भी नहीं सनु र थर। मरस्टरजी, सरन्यरल सरहब, सतचन्द्र नरथ, मरहौर और भी न जरने तकिने नरम। आज़रद के भी तकिने नरम सरमने आिे हैं, जो सुने पढ़े भी होंगे िो आए गए हो गए। पहली पस्ु िक समरप्त होिी ह ै आज़रद के ओरछर से तनकलने पर। यहर ाँ परठक उत्सकु िर में रह जरिर ह ै इसके बरद आज़रद कर कौन सर कररनरमर सरमने आएगर। यह पस्ु िक की कमी कतहये तक पिर ही नहीं चलिर तक कब समरप्त हो जरिी ह,ै यर याँ ूभी कह सकिे ह ैंतक लेखक परठक को मग्ुध करने में सफल रहर ह।ै दसू रर भरग आिर ह ै करशी। करशी पहली पस्ु िक स े पहले के करलखांड में शरूु होिी ह।ै करशी तमत्रों की बरिचीि पर आधरररि ह।ै पस्ु िक शरूु होने से आतखर िक आप करशी के घरटों पर तबतस्मल, अश्फरक, आज़रद, लरतहड़ी के सरथ उनकी बरिचीि में रम जरिे ह।ैं कभी नरव में बैठे नदी के बीच कहरतनयों में खो जरिे ह।ैं बरिों बरिों में न जरने तकिने नरम, तकिने तकस्से सरमने आिे ह।ैं आज़रद पहले नहीं थे तजन्होंने खदु को अांग्रेजों के हरथ न आने की कसम खरई थी। एक और ऐसर दीवरनर थर तजसने अांग्रेजों के हरथ आने से पहले ख़दु को गोली मरर ली थी। ऐसर लगर जैसे आज़रद को प्रेरणर उन से ही तमली। उनकर नरम और कहरनी जरनने के तलए करशी को पढ़नर होगर। आपको स्वयां उस घटनर क्म कर सरक्षी बननर होगर। दसू री पस्ु िक सि श्री अकरल पर समरप्त होिी ह।ै जो एक गप्तु सन्दशे थर, तकसकर और तकसतलए आप स्वयां पढ़ कर जरतनये। लेतकन यह घटनर िीसरी पस्ु िक के तलए आपकी उत्सकु िर बढ़र दिे ी ह।ै िीसरी पस्ु िक कर िो आवरण ही ऐसर ह ै तक पस्ु िक हरथ में लेिे ही अपने आप ऊजरा कर सांचरर होने लगिर ह।ै इसके खबू सरू ि आवरण के तलए िष रर बधरई के परत्र ह।ैं पस्ु िक कर नरम ह ैतमत्रमेलर। दसू री पस्ु िक ने मेरे मन में एक तवचरर रख तदयर थर तक सांभविः तमत्रमेलर दसू री पस्ु िक की िरह तमत्रों की बरिचीि पर आधरररि होगी। तजस में कुछ तमत्र कहीं तमलकर कुछ योजनर को अांजरम दगें े। लेतकन पस्ु िक कर पहलर अध्यरय ही आपको चौंकर दिे र ह।ै यह पस्ु िक भरई परमरनन्द की कक्षर से शरूु होिी है। अब आप कहगें े ये कौन? तफर आपको ग़दर के तवषय में पढ़नर होगर। तजस कक्षर को वो पढ़र रह े ह ैं उसमे एक छरत्र ह ै भगि तसांह और जो तवषय वे पढ़र रह े ह ैं वह ह ै - सरवरकर। हरल ही में वरमपांथ के परु ोधरओ ांने नयर कथरनक गढ़र ह ै तक नहीं जी भगि तसांह िो सरवरकर को पसांद नहीं करिे थे। उस परू े नैरेतटव की कलई यह पस्ु िक खोल दिे ी है। पस्ु िक में भगि तसांह उत्सकु िर से अपनी कक्षर में सरवरकर के जीवन सांघषा को सनु रह ेहैं। सरवरकर कर योगदरन लोगों को जगरने कर थर। ऐसे अनेक सांगठन को सांगतठि करने में जीवन लगर तदयर जो आगे जरकर स्विांत्रिर सांग्ररम की नींव बने। प्रथम दो अध्यरय में ही आप जरन जरिे ह ैं तक अटल जी ने क्यों कहर थर - सरवरकर मरने िेज,सरवरकर मरने त्यरग, सरवरकर मरने िप। उनकी बरिों से अगर उन लोगों में स्विांत्रिर की ज्वरलर जरग जरए जो गलु रम और अवसरद की मरनतसकिर से ग्रस्ि थे, िो क्यर ही कहगें े आप। तसफा स्विांत्रिर के तलए जरगरूक होनर ही नहीं बतल्क अांगेजों की आांख में आांख डरलकर बरि करने की तहम्मि पैदर कर दने र बहुि बड़ी बरि थी। तफर पस्ु िक उनके सांगठनों और सरतथयों की गरथरएां कहिी ह।ै ऐसर ही एक सांगठन थर तमत्रमेलर सांभविः तजसके नरम पर लेखक ने यह नरम पस्ु िक को तदयर। इस पस्ु िक में भी कई सनु े अनसनु े नरम आिे ह।ैं तिलक को िो सब जरनिे हैं, कुछ लोगों को चरपेकर और लरलर हरदयरल भी यरद होंगे। हुसैन सरहब, शरमजी वमरा जैसे कई नरम मैंने पहली बरर पढ़े। पस्ु िक उस घटनर कर भी तजक् करिी ह ै जब सरवरकर ने १८५७ के तवषय में जरनर और वह बहुमूल्य पस्ु िक तलखी तजसमें उन्होंने १८५७ को भररि कर प्रथम स्विांत्रिर सांग्ररम बिरयर। अन्य घटनरएां और तवस्िरर से आप पस्ु िक में ही पढ़े िो बेहिर होगर। क्रांतिदिू तसफा क्रांतिकरररयों की कहरनी नहीं ह,ै बतल्क उन घटनरओ ांऔर परतस्थतियों की कहरनी ह ै तजन्होंने उन्हें क्रांतिकररी बनरयर। उन लोगों की भी कहरनी ह ैतजन्होंने उनकर वह चररत्र गढ़र तजसे हम आज जरनिे ह।ैं जैसे आज़रद के जीवन में मरस्टरजी और सरवरकर के जीवन में शरमजी वमरा। यह पस्ु िक शांख लर जीिर जरगिर इतिहरस ह,ै इतिहरस होिे हुए भी उबरऊ नहीं ह।ै यह उपन्यरस और इतिहरस के बीच कर कुछ ह ैजो इसे रोचक बनरये हुए ह।ै िीनों भरग हरडाकवर में ह ै तजससे इसे सहजे कर रखनर अतधक सरल होगर। आशर ह ै डॉ. सरहब शांख लर के अगले भरग की अतधक प्रिीक्षर नहीं करवरएांगे। पस्ु िक : क्रांतिदिू (भरग-१,२,३) तवक्य तलांक - https://pages.razorpay.com/krantidoot लेखक: डॉ. मनीष श्रीवरस्िव प्रकरशक : सवा भरषर ट्रस्ट मल्ू य : 249 समीक्षक- Ajay Chandel MIG-1-118, Deen Dayal Nagar, Makronia, Sagar, Madhya Pradesh, 470004 Phone - +919891517447

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