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Jin Sutra PDF

656 Pages·7.394 MB·Hindi
by  OshoMahavir
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जिन-सूत्र, भाग दो अनक्रु म 1. सत्य के द्वार की कुुंि ीः सम्यक-श्रवण............................................................................. 3 2. यात्रा का प्रारुंभ अपने ह घर से ................................................................................ 21 3. ज्ञान ह ै परमयोग .................................................................................................. 42 4. ककनारा भ तर ह ै.................................................................................................. 61 5. ि वन ह है गुरु ................................................................................................... 79 6. करना ह ै सुंसार, होना ह ै धमम .................................................................................. 103 7. ध्यान का द प िला लो ........................................................................................ 121 8. प्रेम ह ै द्वार ........................................................................................................ 139 9. प्रेम का आजिर जवस्तारीः अहहसुं ा ............................................................................ 158 10. दिु की स्व कृजतीः महासुि की नींव .......................................................................... 178 11. समता ह सामाजयक ............................................................................................ 198 12. ज्ञान ह क्राुंजत .................................................................................................... 217 13. गुरु ह ै मन का म त .............................................................................................. 236 14. ि वन तैयार है, मृत्य ु पर क्षा ह ै............................................................................. 257 15. त्वरा स े ि ना ध्यान है ......................................................................................... 276 16. गुरु ह ै द्वार ........................................................................................................ 301 17. ध्यान ह ै आत्मरमण.............................................................................................. 318 18. मुजि द्वद्वुं ात त ह ै................................................................................................. 340 19. ध्यानाजि से कमम भस्म भूत .................................................................................... 363 20. गोशालकीः एक अस्व कृत त र्थंकर ............................................................................ 389 21. छह पजर्थक और छह लेश्याए ुं.................................................................................. 412 22. जपया का गाुंव .................................................................................................... 435 1 23. षट पदों की ओट म .ें ............................................................................................. 457 24. आि लहरों में जनमुंत्रण ......................................................................................... 481 25. चौदह गुणस्र्थान ................................................................................................. 507 26. प्रेम के कोई गुणस्र्थान नहीं..................................................................................... 527 27. पुंजितमरण सुमरण ह ै........................................................................................... 547 28. रसमयता और एकाग्रता ........................................................................................ 570 29. जत्रगुजि और मुजि ............................................................................................... 593 30. एक द प से कोटट द प हों ...................................................................................... 616 31. याद घर बुलान े लग ............................................................................................ 637 2 जिन-सूत्र, भाग दो पहला प्रवचन सत्य के द्वार की कुुंि ीः सम्यक-श्रवण सोच्चा िाणइ कल्लाणुं, सोच्चा िाणइ पावणुं। उभयुं जप िाणए सोच्चा, िुं छेयुं तुं समायरे।। 81।। णाणाऽऽणत्त ए पुणो, दुंसणतवजनयमसुंयम े टिच्चा। जवहरइ जवसुज्झमाण , िावज्ज व ुं जप जनवकुंपो।। 82।। िह िह सुयभोगाहइ, अइसयरसपसरसुंिुयमपुव्वुं। तह तह पल्हाइ मुण , नवनवसेवेगसद्धाओ।। 83।। सूई िहा ससुत्ता, न नस्सइ कयवरजम्म पजिआ जव। ि वो जव तह ससुत्तो, न नस्सइ गओ जव सुंसारे।। 84।। किर हम महाव र के त र्थम की चचाम करें। ऐसे सत्पुरुषों को किर-किर सोचना िरूर ह।ै सोच-सोचकर सोचना िरूर ह।ै बार-बार उनका स्वाद हमारे प्राणों म ें उतरे। हमें भ वैस प्यास िगे। जिस प्यास ने उन्ह ें परमात्मा बनाया, वह प्यास हमें भ परमात्मा बनाये। क्योंकक अुंततीः प्यास ह ले िात ह।ै िब प्यास इतन सघन होत है कक सारा प्राण प्यास में रूपाुंतटरत हो िाता ह,ै तो परमात्मा दरू नहीं। परमात्मा पाने के जलए कुछ और चाजहए नहीं। ऐस परम प्यास चाजहए कक उसमें सब कुछ िूब िाए, तल्ल न हो िाए। तो किर महाव र की चचाम करें। और महाव र की किर चचाम करने में यह बात सबसे पहले समझ लेन िरूर ह ै कक महाव र ने श्रवण पर बड़ा िोर कदया ह।ै महाव र कहते ह,ैं सोया ह ै आदम , तो कैसे िागेगा? कोई पुकारे उस,े कोई जहलाये-िुलाये, कोई िगाये। कोई उसे िबर द े कक िागरण का भ कोई लोक ह।ै सोया आदम अपने से कैसे िागेगा। सोया तो िागने का भ सपना देिने लगता ह।ै सोया तो सपने में भ सोचने लगता ह,ै िाग गये! भेद कैसे करेगा सोया हुआ आदम कक िो मैं देि रहा ह ुं वह स्वप्न ह ै या सत्य? कोई िागा उसे िगाये। कोई िागा उस े जहलाये। इसजलए महाव र कहते ह,ैं सुनकर ह सत्य की यात्रा शुरू होत ह।ै महाव र ने कहा ह,ै मेरे चार त र्थम ह।ैं श्रावक का, श्राजवका का; साधु का, साध्व का। लेककन पहले उन्होंने कहा, श्रावक का, श्राजवका का। श्रावक का अर्थ म ह,ै िो सुनकर पहुचुं िाए। साधु का अर्थ म ह,ै िो सुनकर न पहुचुं सके, सुनना जिसे कािी न पड़ े जिसे कुछ और करना पड़े। साधुओं ने हालत उल्ट बना द ह।ै साधु कहते ह ैं कक साधु श्रावक से ऊपर ह।ै ऊपर होता तो महाव र उसकी गणना पहले करते। तो उसे प्रर्थम रिते। महाव र कहते ह,ैं ऐसे हैं कुछ धन्यभाग , िो केवल सुनकर पहुचुं िाते ह।ैं जिन्ह ें कुछ और करना नहीं पड़ता। करना तो उन्ह ें पड़ता ह ै िो सुनकर समझ नहीं पाते। तो करनेवाला सुनने से दोयम ह,ै नुंबर दो ह।ै इसे समझना। बुद्ध कहते र्थे, ऐसे घोड़ े ह ैं कक जिनको मारो तो ह चलते ह।ैं ऐसे भ घोड़ े ह ैं कक कोड़ े की िटकार देिकर चलते ह,ैं मारने की िरूरत नहीं पड़त । ऐसे भ घोड़ े ह ैं कक कोड़े की छाया देिकर चलते ह।ैं िटकारने की भ िरूरत नहीं पड़त । 3 श्रावक को सुनना कािी ह।ै उतना ह िगा देता ह।ै तुमने ककस को पुकारा, कोई िग िाता ह।ै पर ककस को जहलाना पड़ता ह।ै ककस के मुुंह पर पान िेंकना पड़ता ह।ै तब भ वह करवट लेकर सो िाता ह।ै श्रावक ह ै वह, जिसने सुन पुकार और िाग गया। साधु ह ै वह, िो करवट लेकर सो गया। जिसको जहलाओ, शोरगुल मचाओ, आुंिों पर पान िेंको। श्रवण--सम्यक-श्रवण--सुध व्यजि के जलए पयामि ह।ै इशारा बहुत ह ै बुजद्धमान को। पहला सूत्र है आि का-- सोच्चा िाणइ कल्लाणुं, सोच्चा िाणइ पावगुं। उभयुं जप िाणए सोच्चा, िुं छेयुं तुं समायरे।। "सुनकर ह कल्याण का--आत्मजहत का मागम िाना िा सकता ह।ै " सुनकर ह । "सुनकर ह पाप का मागम भ िाना िा सकता ह।ै अतीः सुनकर ह जहत और अजहत दोनों का माग म िानकर िो श्रेयस हो उसका आचरण करे।" िाओ उनके पास, िो िाग गये ह।ैं बैिो उनके पास, िो िाग गय े ह।ैं िूबो उनकी हवा में, िो िाग गये ह।ैं उनकी तरुंगें तुम्हें िगायें। सत्सुंग का इतना ह अर्थ म ह।ै सुनो उन्ह,ें जिन्होंने पाया ह।ै उनके शब्दों में भ शून्य होगा। उनकी आवाि में भ मुंत्र होगा। उनके इशारे में भ तुम्हारे ि वन की नाव जनर्ममत हो िाएग । सुनकर ह । और उपाय भ तो नहीं ह।ै गुरजिएि कहता र्था--इस सद का एक बहुत बड़ा त र्थंकर--कहता र्था, हमार हालत ऐसे ह ै िैसे रेजगस्तान म,ें िुंगल में, जनिमन म ें कुछ यात्र रात पड़ाव िालें। ितरा ह।ै ब हड़ ह।ै िुंगल पशु हमला कर सकते ह।ैं िाकू-लुटेरे जछपे हों। अनिान िगह ह।ै अपना कोई नहीं, पहचान नहीं। ऐसा ह तो सुंसार ह।ै तो क्या करे यात्र दल? एक को िागता हुआ छोड़ देता ह ै कक कम से कम एक िागता रहे, बाकी सो िाएुं। किर पार -पार स े और लोग िागते रहते ह।ैं िो िागा ह,ै वह िुद के सोने के पहले ककस और को उिा देता ह।ै कम स े कम एक द या तो िलता रहे अुंधेरे में। कम स े कम कोई एक तो िागकर देिता रह।े ितरा आये तो हमें सोया हुआ न पाये। सदगुरु का इतना ह अर्थ म ह ै कक तुम िब सोये हो तब कोई तुम्हारे पास म ें बैिा हुआ, िागा हुआ ह।ै तुम तो सोये हो, तो सपने में िूब िाओगे। तुम तो न-मालूम ककतने वासनाओं, कल्पनाओं के लोक में भटक िाओगे। तुम तो न-मालूम ककतने मन के िेलों म ें िूब िाओगे। लेककन िो िागा है, वह यर्थार्थम को देिता रहगे ा। उस े सुनो। िब िागा हुआ कुछ कहे, तो सुनो, समझो। िागे हुए के सार्थ तकम का सवाल नहीं ह,ै क्योंकक उसकी भाषा बड़ और ह।ै उससे तकम करके तुम कुछ भ न पाओगे। उससे तकम करके केवल तुम बुंद रह िाओगे। िागे के सार्थ तकम नहीं हो सकता। िागे के सार्थ तो केवल श्रवण हो सकता ह।ै उससे जववाद नहीं हो सकता, केवल सुनना हो सकता ह।ै वह िो कहे, उसे प ओ। वह िो कहे, तुम्हारे सोचने का सवाल उतना नहीं ह ै जितना प ने का सवाल ह।ै क्योंकक वह िो कह रहा ह,ै उसे प कर ह तुम समझ सकोगे कक सह ह ै या गलत ह।ै और तो कोई उपाय नहीं। लेककन अगर ि क से सुना गया, तो सत्य की मजहमा ह ै कक ि क से सुननेवाले को सत्य तत्क्षण हृदय में चोट करने लगता ह।ै कहा गया अगर असत्य ह,ै तो ि क से सुनते समय ह साि हो िाता ह ै कक असत्य ह।ै तय नहीं करना पड़ता, जवचार भ नहीं करना पड़ता। असत्य के कोई पैर ह नहीं ह।ैं पैर तो सत्य के ह।ैं असत्य तो तुम्हारे हृदय तक िा ह नहीं सकता। असत्य तो लुंगड़ा ह।ै असत्य तो बाहर ह जगर िाएगा। तुम अगर शाुंत 4 बैिे सुनने को तैयार हो, तो घबड़ाओ मत कक कहीं ऐसा न हो कक असत्य भ तर प्रवेश कर िाए। असत्य तो तभ प्रवेश करता ह ै िब तुम शाुंत, मौन श्रवण नहीं करते। तुम्हार नींद के द्वार से ह असत्य प्रवेश करता ह।ै तुम्हार मूर्चछा म स े ह प्रवेश करता ह।ै अगर तुम सिग होकर सुनने बैिे हो, तो असत्य जगर िाएगा बाहर। तुम्हार आुंि का सामना न कर सकेगा असत्य। वह शाुंत सुननेवाले के प्राण पयामि ह ैं असत्य को जगरा देने को। िो सत्य ह,ै वह चला आयेगा चुुंबक की तरह हिुंचता हुआ। िो सत्य ह ै वह तुम्हारे प्राणों में त र की तरह प्रवेश कर िाएगा। िो असत्य ह,ै बाहर रह िाएगा। तुम सत्य हो, तुम सत्य को ह िींच लोगे। लेककन अगर तुमने ि क से न सुना, अगर तुमने जवचार ककया, तुमने सोचा, तुमने कहा यह ि क ह ै या नहीं, मेर अत त मान्यताओं से मेल िाता, नहीं िाता, तो सुंभव ह ै कक असत्य तुम्हारे भ तर प्रवेश कर िाए। असत्य बहुत तार्कमक ह।ै ि वुंत तो िरा-भ नहीं, लेककन बड़ा तकमयुि ह।ै सत्य के पास कोई तकम नहीं, कोई प्रमाण नहीं। सत्य अजस्तत्ववान ह,ै वह उसका प्रमाण ह।ै इसजलए शास्त्र कहते ह ैं सत्य स्वयुं प्रमाण ह।ै असत्य स्वयुं अप्रमाण ह।ै सुन लो ि क से। उस सुनने म ें ह चुनाव हो िाएगा। "सोच्चा िाणइ कल्लाणुं।" सुनकर ह कल्याण का पता चल िाता ह ै कक क्या है कल्याण। "सोच्चा िाणइ पावगुं।" सुनकर ह पता चल िाता ह ै कक पाप क्या ह,ै गलत क्या ह,ै अकल्याण क्या ह?ै और महाव र की बड़ िूब ह;ै व े कहते ह ैं मेरे पास कोई आदेश नहीं ह।ै मैं तुमसे नहीं कहता कक तुम ऐसा करो। महाव र कहते ह,ैं तुम जसिम सुन लो। "अतीः सुनकर जहत और अजहत दोनों का मागम िानकर िो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करना।" महाव र यह भ नहीं कहते कक पाप को छोड़ो। कहने की िरूरत नहीं। ि क से सुननेवाले को पाप पकड़ता ह नहीं। महाव र यह भ नहीं कहते कक सत्य का अनुसरण करो। यह बात ह व्यर्थम होग । जिसने ि क स े सुना है वह सत्य के अनुसरण म ें लग िाता ह।ै अनुसुंधान म ें लग िाता ह।ै इसका यह अर्थ म हुआ--सम्यक-श्रवण कुुंि ह ै सत्य के द्वार की। जिसके हार्थ में सम्यक-श्रवण ह,ै वह पहुचुं िाएगा। उसे कोई रोक न सकेगा। इसे हम र्थोड़े वैज्ञाजनक अर्थों म ें समझें। आदम के पास आुंि है देिने को, कान ह ैं सुनन े को। आुंि से िब तुम देित े हो, तो एक ह कदशा में देि सकते हो। आुंि बहु-आयाम नहीं ह।ै "मल्ट -िायमेंशनल" नहीं ह।ै एक तरि देिो, तो सब कदशाए ुं बुंद हो िात ह।ैं आुंि एकाुंग ह।ै आुंि एकाुंत ह।ै इसजलए महाव र का िोर कान पर ज्यादा ह,ै आुंि की बिाय। कान बहु- आयाम ह।ै आुंि बुंद करके सुनो, तो चारों तरि की आवािें सुनाय पड़त ह।ैं आुंि समग्र को नहीं ले पात । कान समग्र को भ तर ले लेता ह।ै यह पहल बात ख्याल म ें लेने की! आुंि से िब भ तुम देिते हो, तो एक कदशा म,ें एक रेिा में। उतन रेिा को छोड़कर शेष सब बुंद हो िाता ह।ै आुंि ह ै िैसे टाचम। एक कदशा में प्रकाश की धारा पड़त ह।ै लेककन शेष सब अुंधकार में हो िाता ह।ै महाव र कहते हैं, यह एकाुंग होगा; यह एकाुंत होगा। तुम एक पहलू को िान लोगे, लेककन शेष पहलुओं स े अनिान रह िाओगे। यह ऐसा ह होगा िैसे उन पाुंच अुंधों की कर्था ह,ै िो हार्थ को देिने गये र्थे। सबने हार्थ के अुंग छुए, लेककन सभ का दशमन--अुंधे र्थे, सभ की प्रत जत एकाुंग र्थ । जिसने पैर छुआ उसने सोचा कक हार्थ िुंभे की भाुंजत ह।ै जिसने कान छुए उसने सोचा कक हार्थ पुंिे की भाुंजत ह।ै अलग-अलग। वे सभ सत्य र्थे, लेककन सभ अधूरे सत्य र्थे। 5 और महाव र कहते ह,ैं अधूरा सत्य असत्य से भ बदतर ह।ै क्योंकक असत्य को तो पहचानने म ें कटिनाई नहीं, वह तो जनष्प्प्राण ह,ै वह तो लाश की तरह ह।ै उसको तो तुम समझ ह िाओगे कक यह मुदा म ह।ै आधा सत्य ितरनाक ह।ै क्योंकक आधे सत्य में र्थोड़ -स प्राणों की झलक ह।ै श्वास अभ चलत ह,ै मर ि अभ मरा नहीं। लगता है हिुंदा ह।ै अभ शर र र्थोड़ा गरम ह,ै िुंिा नहीं हो गया ह।ै िून अभ बहता ह।ै लगता ह ै हिुंदा ह।ै आधा सत्य असत्य स े बदतर ह।ै इसजलए महाव र का सारा सुंघषम आधे सत्यों के जिलाि ह,ै असत्य के जिलाि नहीं। उन्होंने कहा असत्य तो सुनकर ह समझ म ें आ िाता ह ै कक असत्य ह।ै लेककन आधे सत्य बड़े भरमाते ह।ैं महाव र ने एक नये ि वन-दशमन को िन्म कदया। उस े कहा, स्यातवाद। उसे कहा, अनेकाुंतवाद। उस े कहा कक मैं सारे एकाुंग सत्यों को इकट्ठा कर लेना चाहता ह।ुं य े पाुंचों अुंधों ने िो कहा है हार्थ के सुंबुंध में, यह सभ सच ह।ै और सत्य इन सभ का इकट्ठा िोड़ ह,ै समन्वय ह।ै कान की िूब है कक कान आुंि से ज्यादा समग्र ह।ै िब तुम सुनते हो तो चारों कदशाओं से सुनते हो। कान ऐसे ह ैं िैसे द या िले। सब तरि प्रकाश पड़े। आुंि ऐसे ह ैं िैसे टाचम। एक कदशा में। एकाुंग । महाव र कहते ह ैं कक दशमनशास्त्र एकाुंग ह।ै श्रवणशास्त्र बहु-अुंग ह।ै इसजलए महाव र ने एक बड़ क्राुंजतकार प्रज्ञा द । उन्होंने कहा कक सुनो। अगर ध्यान म ें िाना ह,ै तो सुनकर िल्द िा सकोगे, बिाय देिकर। इसजलए समस्त ध्याजनयों ने आुंि बुंद कर लेन चाह ह।ै समस्त ध्यान की प्रकक्रयाएुं कहत ह ैं आुंि बुंद कर लो। यह भ र्थोड़ा समझने िैसा है कक परमात्मा ने आुंि को ऐसा बनाया ह ै कक चाहो तो िोल लो, चाहो तो बुंद कर लो। कान को ऐसा नहीं बनाया। कान िुला ह।ै बुंद करने का उपाय नहीं। आुंि तुम्हारे हार्थ म ें ह।ै कान अब भ परमात्मा के हार्थ म ें ह।ै तुम्हारे वश में नहीं कक तुम उसे िोलो, बुंद करो। सदा िुला ह।ै तुम्हार गहर स े गहर नींद में भ कान िुला ह।ै आुंि तो बुंद ह।ै िब तुम मूर्चछा म में िोये हो, तब भ कान िुला ह।ै आुंि तो बुंद ह।ै नींद में पड़े आदम के पास िागा आदम िड़ा रह,े तो देि न पायेगा। नींद म ें पड़ा आदम देिेगा कैसे, आुंि तो बुंद ह।ै लेककन अगर वह आदम उसका नाम ल,े आवाि दे, तो सुन तो पायेगा। हम सोये ह।ैं श्रवण से रास्ता जमलेगा। आुंि तो हमार बदुं ह ह।ै और िुल भ हो तो ज्यादा से ज्यादा अधूरा सत्य देि सकत ह।ै पूरा सत्य आुंि के वश में नहीं ह।ै तुम्हारे हार्थ में म ैं एक छोटा-सा कुंकड़ दे द ुंू और तुमसे कह ुं इसे पूरा एक-सार्थ देि लो, तो तुम न देि पाओगे। आुंि इतन कमिोर ह!ै एक जहस्सा देिेग , दसू रा जहस्सा दबा रह िाएगा। एक छोटा-सा कुंकड़ भ तुम पूरा नहीं देि सकते, तो पूरे परमात्मा को, पूरे सत्य को कैसे देि सकोगे? इसजलए जिन्होंने देिन े पर िोर कदया ह,ै उन्होंन े अधूरे दशमनशास्त्र िगत को कदये ह।ैं महाव र का दशमनशास्त्र पटरपूणम ह,ै समग्र ह।ै िोर बड़ा जभन्न ह।ै सुनो! सत्य को देिना नहीं, सत्य को सुनना ह।ै सत्य कोई वस्तु र्थोड़े ह है कक तुम उस े देि लोगे। सत्य तो ककस व्यजि का अनुभव ह।ै वह कहगे ा तो तुम सुन लोगे। महाव र िड़े रह ें तुम्हारे समक्ष, तुम कुछ भ न देि पाओगे। बहुतों ने महाव र को देिा र्था और कुछ भ न देिा। गाुंव-गाुंव िदेड़े गये। पत्र्थर मारे गये। गाुंव-गाुंव जनकाले गये। महाव र को देिन े में क्या अड़चन आत र्थ ? इस मजहमावान पुरुष को ऐसा जतरस्कार क्यों झेलना पड़ा? लोग अुंधे ह।ैं कदिाय उन्ह ें पड़ता ह नहीं। सनु सकते ह।ैं इसजलए सुनने की कला को स ि लेना धम म के िगत में पहला कदम ह।ै क्या ह ै सुनने की कला? कैसे सुनोगे? िब सुनो, तो सोचना मत। क्योंकक तुमने अगर सोचा सुनते समय, तो तुम वह न सुन पाओगे िो कहा गया। कुछ और सुन लोगे। सुनते समय पूव-म धारणाओं को लेकर मत चलना। नहीं तो पूवम-धारणाएुं पदे का काम करेंग । रुंग घोल देंग िो कहा गया ह ै उसमें। तुमने कभ ख्याल ककया, रात 6 तुम अलामम लगाकर सो गय े हो, चार बिे उिना ह ै ट्रेन पकड़ने। और िब अलाम म बिता ह,ै तो तुम एक सपना देिते हो कक मुंकदर की घुंटटयाुं बि रह ह।ैं अलाम म ितम! तुमने एक सपना बना जलया। अब घड़ एलाम म बिात रहे, क्या करेग घड़ ? तुमने एक तरकीब जनकाल ल । तुमने कुछ और सुन जलया! सुबह तुम हरै ान होओगे कक हुआ क्या? अलाम म भरा र्था, अलाम म बिा भ , मैं चूक क्यों गया? तुम्हारे पास अपन एक धारणा र्थ , एक सपना र्था। तो अगर तुमने सुना कोई पक्षपात के सार्थ, तो तुम कुछ का कुछ सुन लोगे। मैंने सुना है, एक कदन मुल्ला नसरुद्द न अपने जमत्र के सार्थ ज्यादा देर तक गपशप म ें लगा रहा। रात बहुत ब त गय । चौंककर उिा, उसने कहा बहुत देर हो गय , अब घर िाऊुं। जमत्र ने कहा, आि भाभ तो बहुत इत्र- पान करेंग । मुल्ला ने कहा तूने मुझ े समझा क्या ह?ै अगर घर िाते ह पहला शब्द पत्न स े प्र तम न जनकलवा लूुं, तो मेरा नाम बदल देना। या तेर हिुंदग भर गुलाम कर दुंगू ा। जमत्र भल भाुंजत मुल्ला की पत्न को िानता ह,ै उसने कहा कोई किक्र नहीं, दो म ल चलना पड़ेगा--इस अुंधेर रात में--लेककन मैं आता ह,ुं शत म रह ! नसरुद्द न घर गया। उसने िाकर द्वार पर दस्तक द और िोर से बोला, "प्र तम आ गय े ह।ैं " पत्न जचल्लाय अुंदर से, "प्र तम िाएुं भाड़ में।" उसने जमत्र से कहा, "देिा, कहलवा जलया न! पहला शब्द प्र तम जनकलवा जलया न!" अगर कोई धारणा ह,ै अगर पहले से कोई पक्षपात है, तो तुम कुछ का कुछ सुन लोगे। तुम सत्य को अपने जहसाब स े ढाल लोगे। तुम उसे असत्य कर लोगे। ऐसे ह तो लोग चूके महाव र को, बुद्ध को, कृष्प्ण को, िरर्थुस्त्र को, ि सस को। कुछ का कुछ सुन जलया। कहा र्था कुछ, सुन जलया कुछ। सुननेवाले के पास अपना मन र्था, अपना मिबूत मन र्था, उसने मन के माध्यम से सुना। मन को हटाकर सुनो, तो महाव र का श्रवण समझ में आयेगा। मन को ककनारे रि दो, िहाुं तुम िूते उतार आये हो वहीं मन को उतार आना। एक बार िूते भ मुंकदर म ें ले आओ तो इतना अपजवत्र नहीं, मन को मुंकदर में मत लाना। नहीं तो मुंकदर म ें कभ आ ह न सकोगे। "सुनकर ह कल्याण का, आत्मजहत का माग म िाना िा सकता ह।ै सुनकर ह पाप का माग म िाना िा सकता ह।ै " श्रवण की कला आते ह तुम दधू और पान को अलग-अलग करने में कुशल हो िाते हो। जववेक का िन्म होता ह।ै तुम हसुं हो िाते हो। इस जलए तो हमने ज्ञाजनयों को परमहसुं कहा ह।ै परमहसुं का अर्थ म ह,ै गलत को और सह को वे तत्क्षण अलग कर लेंगे। उनकी आुंि, उनकी दजृ ि, उनकी भावदशा बड़ साि ह,ै जनममल ह।ै िो िैसा ह ै उसे वे वैसा ह देि लेते ह।ैं िैसे को तैसा देि लेते ह।ैं उसम ें कुछ िोड़ते नहीं। किर कोई भ्ाुंजत िड़ नहीं होत । बतानेवाले वहीं पर बताते ह ैं मुंजिल हिार बार िहाुं से गुिर चुका ह ुं मैं तुम भ गुिरे हो। मुंकदर के आसपास ह पटरक्रमा चल रह ह।ै क्योंकक परमात्मा सब िगह मौिूद ह।ै कहीं भ िाओ, उस के पास पटरक्रमा चल रह ह।ै कुछ भ देिो, तुमने उस को देिा ह।ै कुछ भ सुनो, तुमन े उस को सुना ह।ै कोयल पुकार हो, कक झरने की आवाि हो, कक िलप्रपात हो, कक हवाए ुं गुिर हों वृक्षों से, वह गुिरा ह।ै लेककन, तुम उसे पहचान नहीं पाते। बतानेवाले वहीं पर बताते ह ैं मुंजिल हिार बार िहाुं से गुिर चुका ह ुं मैं 7 मुंजिल तो तुम्हारे भ तर ह;ै गुिर चुके, यह कहना भ ि क नहीं। िहाुं तुम सदा से हो, मुंजिल वहीं ह।ै कसौट तुम्हारे पास नहीं। सोने का ढेर लगा है चारों तरि, तुम्हारे पास सोने को कसने का पत्र्थर नहीं। ह रे- िवाहरात बरस रह े ह ैं चारों तरि, तुम्हारे पास िौहर की आुंि नहीं। और महाव र कहते हैं, श्रवण पहला सूत्र ह।ै सुनो। ऐसा कभ भ नहीं हुआ ह ै पृथ्व पर कक िागे पुरुष न रह े हों। ऐसा होता ह नहीं। उनकी शृुंिला अनवरत ह।ै अनुस्यूत ह ैं वे। अजस्तत्व म ें प्रजतपल कोई न कोई िागा हुआ पुरुष मौिूद ह।ै अगर तुम सुनने को तैयार हो, तो परमात्मा तुम्हें पुकार ह रहा ह।ै कभ महाव र स,े कभ कृष्प्ण से, कभ मुहम्मद से। वह तुम्ह ें हिार ढुंगों से पुकारता ह।ै वह हिार भाषाओं में पुकारता ह।ै वह हिार तरह से तुम्हारे हार्थ जहलाता ह।ै लेककन तुम हो कक तुम सुनते नहीं। मेहर सकदयों से चमकता ह रहा अफ्लाक पर रात ह तार रह इुंसान के इद्राक पर अक्ल के मैदान में िुल्मत का िेरा ह रहा कदल में तार की कदमागों में अुंधेरा ह रहा और मेहर सकदयों से चमकता ह रहा अफ्लाक पर, रात ह तार रह इुंसान के इद्राक पर। सूरि चमकता ह रहा ह,ै सकदयों से, सदा से। सूरि इस अजस्तत्व का अजनवाय म अुंग ह।ै लेककन आदम अुंधेरे म ें ह ि ता ह।ै आदम अपने भ तर बुंद ह।ै ऐसा समझो कक सूरि जनकला हो और तुम घर के भ तर द्वार-दरवािे बुंद ककये बैिे हो। किर सूरि करे भ तो क्या? द्वार-दरवाि े िोलो, र्थोड़े ग्रहणश ल बनो। कान का यह अर्थम ह।ै कान प्रत क ह ै ग्रहणश लता का। इसे भ समझ लेना। आुंि आक्रामक ह,ै कान ग्राहक ह।ै और महाव र की अहहसुं ा इतन गहर है कक वह आुंि का उपयोग न करेंगे। क्योंकक आुंि म ें आक्रमण ह।ै िब म ैं तुम्ह ें देिता ह,ुं तो मेर आुंि तुम तक गय । िब मैं तुम्ह ें सुनता ह,ुं तब मैंने तुम्ह ें अपने भ तर जलया। िब मैं तुम्ह ें देिता ह,ुं तो देिने में एक आक्रमण ह।ै इसजलए कोई आदम तुम्ह ें घूरकर देि,े तो अर्चछा नहीं लगता। कोई तुम्ह ें गौर से सुने, तो बहुत अर्चछा लगता ह,ै ख्याल ककया? गौर से सुननेवाले को तुम बड़ा प्यार करते हो। लोग तलाश म ें रहते ह,ैं कोई जमल िाए सुननेवाला। पजिम में, िहाुं कक सुननेवाले कम होते चले गये ह,ैं मनोजवश्लेषक ह।ै वह "प्रोिेशनल" सुननेवाला ह।ै व्यवसाय । उसे पैसे चुकाओ, वह घुंट े भर बड़े गौर से सुनता ह।ै पता नहीं सुनता ह ै कक नहीं सुनता, लेककन ितलाता ह ै कक सुनता ह।ै लोग बड़े प्रसन्न लौटते ह ैं मनोवैज्ञाजनक के पास से। वह कुछ भ नहीं करता। वह कहता ह ै जसिम तुम बोलो, हम सुनेंगे। सुननेवाला इतना भला लगता ह,ै इतना ग्राहक! तुम्ह ें स्व कार करता ह।ै लेककन अगर कोई तुम्हें गौर से देि,े तो अड़चन आत ह।ै मनजस्वद कहते ह ैं त न सेकेंि तक बदामश्त ककया िा सकता ह।ै वह स मा ह।ै उसके आगे आदम लुच्चा हो िाता ह।ै लुच्चे का मतलब, गौर से देिनेवाला। और कुछ मतलब नहीं। िो मतलब आलोचक का होता ह,ै वह लुच्चे का होता ह।ै दोनों एक ह शब्द से बने ह-ैं -लोचन, आुंि। लुच्चे का अर्थम है, िो तुम्ह ें घूरकर देिे। आलोचक का भ यह अर्थम होता ह ै कक िो च िों को घूर-घूरकर देि,े कहाुं-कहाुं भूल ह।ै लेककन तुम गौर से सुननेवाले को बड़ा आदर देते हो। घूर के देिनेवाल े को बड़ा अनादर। हाुं, ककस से तुम्हारा प्रेम हो, तो तुम क्षमा कर देत े हो। वह तुम्ह ें गौर से देि,े चलेगा। लेककन जिससे तुम्हारा कोई सुंबुंध 8 नहीं, तो त न सेकेंि से ज्यादा आुंि नहीं टटकन चाजहए ककस पर। वहा ुं से जशिाचार समाि हो िाता ह।ै वहाुं स े बात अजशि हो िात ह।ै तो हम रास्ते पर आुंिें बचाकर चलते ह।ैं देित े भ ह,ैं नहीं भ देिते ह।ैं दबु ारा लौटकर नहीं देिते। देिन े का मन भ हो, तो भ आुंिें यहाुं-वहा ुं कर लेते ह।ैं तुमने कभ ख्याल ककया, लोग एक-दसू रे की आुंिों म ें आुंिें िालकर बात नहीं करते, क्योंकक वह बेहदग ह।ै लोग इधर-उधर देिते ह।ैं बात एक-दसू रे से करते ह,ैं दिे ते कहीं-कहीं ह।ैं कोई आदम ि क तुम्हार आुंिों में देिकर बात करे, तुम बेचैन अनुभव करोगे, तुम्हें पस ना आने लगेगा। तुम र्थोड़े घबड़ाओगे कक मामला क्या ह?ै कोई िासूस ह?ै सरकार आदम ह?ै मामला क्या ह,ै ऐसा गौर से क्यों देिता ह?ै या पागल ह?ै प्रयोिन होगा कुछ। कुछ तलाश कर रहा ह,ै कुछ िोि रहा ह।ै कान ग्राहक ह।ै आुंि सकक्रय ह।ै कान जनजष्प्क्रय-स्व कार ह।ै कान ऐस े ह ै िैसे कोई द्वार को िोलकर अजतजर्थ की प्रत क्षा करे। सत्य जनमुंजत्रत करना ह।ै सत्य को बुलाना ह।ै सत्य को कहना ह,ै द्वार िुले हैं, आओ। आुंिें जबछा रि हैं, आओ। म ैं तैयार ह,ुं आओ। तुम मुझ े सोया हुआ न पाओगे, आओ। दरवािे बुंद न होंगे, तुम्हें दस्तक देने की भ तकल ि न होग , आओ। आुंि िोिने िात ह।ै कान प्रत क्षा करता ह।ै इसे ऐसा समझो। आुंि पुरुष ह।ै कान स्त्र ह।ै पुरुष सकक्रय ह,ै आक्रामक ह।ै स्त्र ग्राहक ह।ै पुरुष िन्म नहीं द े सकता बच्चे को, स्त्र देत ह।ै उसके पास गभम ह।ै वह अपने भ तर लेने को राि ह।ै सत्य भ तुम्हारे गभम में प्रवेश पाये, तो ह िन्म हो सकेगा। सत्य को तुम्ह ें िन्माना होगा। यह कहीं रिा नहीं है कक गय े और उिा जलया और आ गये। या बािार म ें जबकता है, िर द जलया, या दाम चुका कदये। यह तो तुम्हें िन्म देना होगा और प्रसव की प ड़ा से गुिरना होगा। तुम्हें स्त्र -िैसा होना होगा। समस्त धमम के िोजियों ने इस बात पर बहुत िोर कदया ह ै कक सत्य को पाना हो, तो स्त्रैण ग्राहकता चाजहए। स्व कार का भाव चाजहए। श्रद्धा स्व कार ह,ै तकम िोि ह।ै जवज्ञान िोिता ह।ै धम म प्रत क्षा करता ह।ै जवज्ञान िाता ह ै कोने-काुंतर, उघाड़ता है, िबदमस्त भ करता ह।ै जवज्ञान एक तरह का बलात्कार ह।ै अगर प्रकृजत राि नहीं ह ै अपने पदे उिान े को, अगर प्रकृजत राि नहीं है घूुंघट हटाने को, तो जवज्ञान दयु ोधन-िैसा ह।ै वह द्रौपद को नि करने की चेिा करता ह।ै उसम ें बलात चेिा ह।ै आक्रमण ह।ै धमम प्रत क्षा ह।ै धमम भ उघाड़ लेता है सुंसार को। धम म भ सत्य को उघाड़ लेता ह,ै लेककन प्रेम की तरह। तुम्हार प्रेयस तुम्हारे सामने वस्त्र जगरा देत ह।ै वस्त्र िींचने नहीं पड़ते। प्रेयस िुद ह उघड़ने को राि होत ह।ै आतुर होत ह।ै सत्य स्वयुं उघड़ने को आतुर ह,ै लेककन प्रेम से उघड़ेगा। आक्रमण से नहीं। परमात्मा िुद घूुंघट उिान े के जलए तैयार ह,ै तैयार नहीं बड़ा प्रत क्षारत ह,ै लेककन िबदमस्त से न होगा। आुंि में र्थोड़ िबदमस्त ह।ै कान म ें कोई भ िबदमस्त नहीं। कान कहीं िा नहीं सकता। ध्वजन कान तक तैरकर आत ह।ै कान टरि ह,ै आुंि भर हुई ह।ै आुंि में पतम दर पतम जवचारों की ह,ैं पत म दर पतम बादलों की ह।ैं आुंि में बड़े पदे ह।ैं कान जबल्कुल िाल ह।ै कान के पास कुछ भ नहीं ह,ै जसिम एक तुंतु-िाल ह।ै चोट होत ह,ै कान सिग हो िाता ह,ै स्व कार कर लेता ह।ै महाव र कहते ह,ैं िो सुनेगा--ि क से सुनेगा, सम्यक-श्रवण, "राइट जलसहनुंग"; कृष्प्णमूर्तम जिसको कहते ह ैं "राइट जलसहनुंग", ि क से िो सुनेगा--सत्य अपने-आप असत्य से अलग हो िाता ह।ै दधू दधू , पान पान हो िाता ह।ै ि क से सुनने स े तुम परमहसुं हो िाते हो। मेहर सकदयों से चमकता ह रहा अफ्लाक पर 9 रात ह तार रह इुंसान के इद्राक पर और आदम के बोध पर अुंधेरा छाया रहा, और सूरि र्था कक चमकता ह रहा। अक्ल के मैदान में िुल्मत का िेरा ह रहा कदल में तार की कदमागों में अुंधेरा ह रहा किर कभ -कभ ककस महाव र के पास र्थोड़ -स झलक जमलत ह।ै कुछ नहीं तो कम से कम ख्वाब-े सहर देिा तो ह ै जिस तरि देिा न र्था अब तक उधर देिा तो ह ै ककस महाव र के पास, ककस महाव र की वाण को सुनकर--जिस तरि कभ देिा ह न र्था... भूल ह गये र्थ,े सोचा ह न र्था कक वह भ कोई आयाम ह.ै .. उस तरि देिा तो ह।ै माना कक अभ यह सपना ह।ै पहल दिे िब महाव र की वाण ककस के हृदय म ें उतरत ह,ै नाचत , घूुंघर बिात , सुंग त की तरह मधुर, मधु की तरह म ि , िब पोर-पोर हृदय म ें प्रवेश करत ह,ै तो एक नये स्वप्न का प्रादभु ामव होता ह।ै सत्य के स्वप्न का प्रादभु ामव। पहल बार याद आन शुरू होत है जिसको हम भूले बैिे ह ैं और िो हमारा ह।ै और िो हमारा स्वभाव है और जिसकी तरि हमने प ि कर ल ह।ै और जिसकी तरि हमने आुंि उिान बुंद कर द ह ै और जिस तरि हमने पहुचुं ना ह छोड़ कदया ह।ै हम भूल ह गय े ह ैं कक घर भ लौटना ह।ै बढ़ते ह चले िाते ह ैं सुंसार में। लेककन यह स्वप्न! कुछ नहीं तो कम से कम ख्बाब-े सहर देिा तो ह ै यह सुबह का सपना ह सह अभ , ककस की वाण से पहल दिा तरुंगें उि ह,ैं और सुबह का भाव, सुबह का बोध िगा ह।ै जिस तरि देिा न र्था अब तक उधर देिा तो ह ै लेककन यह तभ सुंभव होगा, िब तुम्हारा हृदय शून्य और शाुंत हो, मौन हो। मैंने सुना ह,ै मुल्ला नसरुद्द न एक नद के ककनारे से गुिर रहा र्था। साुंझ जघरने लग । सूरि ढल चुका ह।ै और एक आदम िूब रहा है; और वह आदम जचल्लाया, सहायता करो, सहायता करो, मैं िूब रहा ह!ुं मुल्ला ककनारे पर िड़ा ह,ै वह बोला हद्द हो गय ; अरे, िूबने में ककस से क्या सहायता की िरूरत, िूब िाओ! इसम ें सहायता की क्या िरूरत ह!ै तुम कुछ का कुछ सुन ले सकते हो। इससे सावधान रहना। लेककन िब तक तुमने मन को जबल्कुल हटाकर न रिा हो, तुम कुछ का कुछ सुनोगे ह । इसजलए ध्यान श्रवण के जलए माग म बनाता ह।ै ध्यान का अर्थम ह,ै मन की सिाई। ध्यान का अर्थम ह,ै अ-मन की तरि यात्रा। ध्यान का अर्थम ह,ै र्थोड़ घजड़यों को मन की धलू से जचत्त के दपमण को जबल्कुल साि कर लेना। महाव र के पास लोग आते, तो महाव र कहते--कुछ देर ध्यान, किर सुनना। इसजलए म ैं इतना िोर देता ह ुं ध्यान पर। तुम मुझे स धा-स धा न सुन सकोगे। कई बुजद्धमान आ िाते ह,ैं वह कहते हैं ध्यान वगैरह से हमें कुछ मतलब नहीं, हमें तो आपको सुनन े में मिा आता ह।ै मिी आपकी! लेककन यह मिा कहीं ले िानेवाला नहीं। यह बुजद्ध की िुिलाहट ह।ै िुिलाने से र्थोड़ा अर्चछा लगता ह,ै म िा-म िा लगता ह।ै िल्द ह लहलुहान हो िाएुंगे। नहीं, इससे कुछ सुनने से सार न होगा। क्योंकक सच तो यह ह,ै सुन तुम पाओगे ह न जबना ध्यान के। ध्यान तुम्ह ें तैयार करेगा कक तुम सुन सको। 10

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