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Bhagawan Vaman PDF

380 Pages·1983·1.984 MB·Hindi
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पौराणिक उपन्यास भगवान वामन लेखक- श्री सदु र्शन णसहिं जी ‘चक्र’ इस पुस्तकको अथवा इसके णकसी अिंर् को कहीं प्रकाणर्त करने अथवा णकसी भी भाषामें अनूणदत करनेका सबको अणधकार है। श्रीकृ ष्ि-जन्मस्थान सेवा सिंस्थान मथुरा-२८१००९ [यह पुस्तक भारत सरकार द्वारा ररयायती मूल्यपर उपलब्ध कागजपर मुणित है।] 2 प्रकार्क: श्रीकृ ष्ि-जन्मस्थान सेवा सिंस्थान, मथुरा-२८१००१ प्रथम सिंस्करि: ११,०० प्रणतयााँ प्रकार्न-णतणथ: णवजय-दर्मी सम्वत ् २०४० णवक्रमी, १६, अक्टूबर, १९८३ ई॰ मूल्य- १२ रुपये ५॰ पैसे मुिक: मयूर प्रेस बिी नगर, दरेसी रोड, मथुरा । फोन: ४४९४ BHAGWAN VAMAN- A Novel-Sudarshan Singh ‘Chakra’ Price Rs. 12.50 P 3 अनुक्रमणिका (Please click on chapter name below to read respectative chapter) भगवान वामन: वन्दन .................................................... 6 अपनी बात ................................................................... 7 उपक्रम ....................................................................... 13 बणल णवजय ................................................................ 33 हस्तक्षेप की आवश्यकता ............................................. 59 देवताओ िंका दैन्य ........................................................ 68 कश्यप-अणदणत ............................................................ 83 अणदणत का पयोव्रत ...................................................... 97 आणवभाशव के पूवश ...................................................... 111 प्रादभाशव ................................................................... 128 ु बणल का सुयर् .......................................................... 146 यज्ञर्ाला की ओर ..................................................... 164 यज्ञर्ाला में .............................................................. 181 4 भूणम-दान .................................................................. 198 वामन से णवराट ......................................................... 215 बणल बन्धन ............................................................... 231 सुतल-साम्राज्य ......................................................... 249 दर्ग्रीव का दभाशग्य .................................................... 266 ु उपेन्ि ....................................................................... 283 आगामी इििं त्व .......................................................... 292 णसिंहावलोकन ............................................................ 300 कल्पान्तर कथा धुन्धु का इन्ित्व ......................................................... 317 देव सिंकट ................................................................. 331 वही भूणम-दान ........................................................... 348 एक दृणि ................................................................... 364 5 भगवान वामन वन्दन- वन्दनीय काश्यप वामन। ऄदददत-नंदन लीलामय व्रजेन्र तनय- ऄदतशय सदय। स्वयं - ठगे जाते तमु ठगने जाकर भी क्योंदक - नहीं अता तम्ु ह ें - कठोर होना दकसी पर भी। लेने भी जाकर - हो दते े ही, वह भी कु छ ऄल्प नहीं, ऄपने को ही। भोले यशोदा-तनय, तम्ु हीं तो वामन! ऄदददत-नंदन! दवप्रश्रेष्ठ! वन्दन! 6 अपनी बात- वामन भगवान और श्रीव्रजेन्रनन्दन म ें मझु े बहुत सादृश्य लगता ह।ै नन्ह-ें नन्ह ें कर-पद वाले भगवान वामन कहीं कौपीन, कमण्डल,ु पलाशदण्ड, ताड़पत्र का छाता सम्हाले न होत े तो? लेदकन ईनकी भी दववशता ही तो ह ै दक प्रकट होते ही वामन बन े तो दपता महदषि कश्यप ने दसर घटु वा ददया, बड़ी-सी चदु टया रख दी और ईपनयन कराके दभक्षापात्र पकड़ा ददया। दकसी ने पछू ा ही नहीं दक 'तम्ु ह ें पीताम्बर दप्रय लगेगा या नहीं?' कदट म ें मंजू की मोटी मेखला बााँधकर कौपीन लगादी और वह्ल के नाम पर कालामगृ -चमि द े ददया। कन्हाइ की कौन-सी जादत? गोप या यादव का जैसे घपला ह,ै भगवान वामन की जादत का घपला ईससे बड़ा ह।ै परु ाने समय म ें ईच्च वणि का परुु ष ऄपने से छोटे वणि की कन्या से दववाह कर लेता था। वैसे शक्रु ाचायिजी की पत्रु ी दवे यानी आसकी ऄपवाद ह।ैं ईन्होंने ब्राह्मण कन्या होकर भी क्षदत्रय राजा ययादत को वरण दकया; दकन्त ु तब भी ईनकी संतान दपता के ही वणि की मानी गयी। लेदकन महदष ि कश्यप तो लोकदपतामह ह।ैं ईनकी संतानों म ें दवे ता, दत्ै य, दानव ही नहीं; नाग, पश,ु पक्षी अदद सब ह।ैं ऄत: ईनकी सन्तानों का वग ि माता के ऄनसु ार माना जाता ह।ै 7 महदषि कश्यप की पत्नी दवे ी ऄदददत की सन्तान दवे ता कही जाती ह;ै दकं त ु दवे ताओ ं म ें सब ऄदददत-पत्रु ही नहीं ह।ैं वाय ु (मरुत), ऄदनन, वस ु अदद और भी दवे ता ह।ैं दवे ी ऄदददत के बारह पत्रु हुए। ईनको अददत्य कहा जाता ह।ै ईनके नाम ह ैं - 1. दववस्वान (आनके ही पत्रु वतिमान मन्वन्तर के मन ु श्राद्चदवे ह।ैं दपता के नाम स े ईनको वैवस्वत कहा जाता ह।ै ), 2. ऄयिमा (ये दपतलृ ोक के भी ऄदधपदत ह।ैं ), 3. पषू ा, 4. त्वष्टा (वत्रृ ासरु के दपता), 5. सदवता, 6. भग, 7. धाता (ये ब्रह्मा नहीं ह।ैं ), 8. दवधाता, 9. वरुण, 10. दमत्र, 11. शक्र (आन्र) 12. ईरुक्रम (वामन)। आनमें-स े ऄदधकांश दभन्न-दभन्न समय म ें सयू ि-मण्डल के ऄदधपदत रहते ह।ैं ऄतः अददत्य शब्द ही सयू ि का पयाियवाची हो गया ह।ै जब सब भाइ क्षदत्रय ह ैं तो सबसे छोटे भाइ वामन के ब्राह्मण होने म ें कोइ कारण ह?ै वामनजी का एक नाम ईपेन्र ह।ै आन्र को जब परु ाण के दवद्रान क्षदत्रय दवे ता मानते ह ैं तो ईपेन्र ब्राह्मण मान े जाने चादहए। स्वगि म ें ईपेन्र दवे ताओ ं के रक्षक ह ैं और सतु ल म ें दत्ै यराज बदल के द्रारपाल होकर बदल के रक्षक ह।ैं आनमें कोइ कमि ऐसा ह ै दक कमिणा ही आन्ह ें ब्राह्मण कहा जाय? लेदकन ऄवतारों म ें वामनजी को ब्राह्मण माना जाता ह।ै क्यों माना जाता ह?ै आसदलए दक ईपनयन के पश्चात ् बदल के यज्ञ म ें दान 8 मांगन े पहुचं गये। जादत का घपला करने का कदादचत यही स्वभाव कृ ष्णावतार म ें बना रहा। सबसे बड़ी बात यह दक कन्हाइ करुणा-वरुणालय तो ह ै ही; दकन्त ु नटखट होने के साथ बहुत भोला ह।ै यह परू ी-की-परू ी दवशेषता वामन भगवान म ें ह।ै ईनका ऄद्भत औदायि बदल तक को ु दवगदलत कर दते ा ह।ै स्वयं शक्रु ाचायि स्तब्ध रह जाते ह ैं दक आतना ऄनग्रु ह भी सम्भव होता ह।ै वामन कन्हाइ ही तो बना और वह ह ै ही ऄनग्रु ह-दवग्रह। नटखटपना भी सीमातीत। नटखटपने म ें कठोरता का ऐसा नाटक दक दवश्वस्रष्टा ब्रह्माजी तक घबड़ा कर भागे अये। बदल को बााँध कर ऄपराधी के समान डाल रखा था सामने और ऄत्यन्त दनष्ठुर के समान डांट रह े थे - 'तनू े मझु े तीन पैर पथ्ृ वी दने े का संकल्प दकया था। बड़ा गवि था तझु े ऄपन े ऐश्वय ि का। तेरा सब राज्य पथ्ृ वी और स्वगि को मैंने तेरे सामने नाप दलया ह।ै ऄब तीसरे पैर को रखने का स्थान ला; ऄन्यथा नरक जा। तनू े मझु े ठगा ह।ै जब तेरे पास दने े को नहीं था तो तनू े दने े को कहा ही क्यों?' दत्रलोकी का साम्राज्य दजसने दबना दहचक, दबना अनाकानी द े ददया - वह महादानी नरक जाय तो धमि की मयािदा बची रहगे ी? धमि की मयािदा नष्ट हो जाय तो सदृ ष्ट रहगे ी दकस अधार पर? धमि ही तो 9 धारक ह ैं सम्पणू ि लोकों का। ऄत: सदृ ष्टकताि घबड़ाये भाग े अये थे। ईन चतमु िखु की चतरु ाइ आस नटखट के सामन े चलती कहााँ ह।ै बदल की मनदस्वता की चचाि तो अगे करनी ही ह।ै भगवान वामन की जब ईदार वाणी गंजू ी, दनष्ठुरता का नाट्य छोड़ कर जब अप ऄपने रूप म ें हसं ते प्रकट हुए, ब्रह्माजी धीरे से दखसक गये। आतना औदायि ईनके दवधान म ें तो संभव नहीं और बदल ही नहीं, शक्रु ाचाय ि तक स्तब्ध रह गये। ईन्ह ें स्वप्न म ें भी कल्पना नहीं थी दक ईनके प्रदतपक्षी आन्र की सहायता करने अने वाला ईनका आतना ऄपना बन जायगा। बदल को ठगने का एक बड़ा भारी अडम्बरपणू ि नाटक अपने खले ा ऄवश्य; दकन्त ु ठगे स्वयं गये। बदल के द्रारा नहीं, ऄपनी ही ईदारता के द्रारा। मायापदत को दसू रा कोइ ठग सके , आतनी सामथ्यि कोइ कहााँ से पावेगा? लेदकन मायापदत आतना ममतामय, आतना ईदार दक ऄपनी ही करुणा के करों से सदा ठगा जाता ह।ै बदल तो बन्धन म ें रह े कु छ क्षण। लेदकन वामन तो ऄपनी ईदारता स े और ऄपने वरदानों से सदा को बाँध गये। आस स्वभावोदार की ईदारता ऄन्तर म ें ईतरे तो ऄन्तर ईससे दनरपेक्ष और कठोर बना रहगे ा? रदवत नहीं होगा? वामन परु ाण म ें भगवान वामन के दो कल्पोंकी ऄवतार-कथा ह।ै मख्ु य कथा तो वही ह ै जो श्रीमद्भागवत के ऄष्टम स्कन्ध म ें ह।ै 10

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