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Akbar and Birbal PDF

78 Pages·2015·5.6 MB·Turkish
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Published by Maple Press Pvt. Ltd. A-63, Sector-58, Noida (UP) 201 301, India Tel. : (0120) 4553581, 4553583 Email: [email protected] Website: www.maplepress.co.in Edition: 2015 Copyright © Maple Press ALL RIGHTS RESERVED. No part of this book may be reproduced or transmitted in any form by any means, electronic or mechanical, including photocopying and recording, or by any information storage and retrieval system, except as may be expressly permitted in writing by the publisher. Printed by Artxel, Noida - 1. उपहार का बंटवारा (cid:974)वषय सूची 2. नकली शेर 3. सड़क के मोड़ 4. असली मा 5. जा(cid:1018) क(cid:938) छड़ी 6. पैस(cid:956) का झोला 7. बेईमान (cid:766)ायधीश 8. कं जूस (cid:872)ापारी 9. (cid:929)ग(cid:481) क(cid:938) या(cid:499)ा 10. सु(cid:748)र धोखा 11. कौऔ क(cid:938) (cid:977)गनती 12. बीरबल और तीन गु(cid:973)ड़या 13. मातृभाषा 14. भ(cid:977)(cid:567) क(cid:938) बात 15. भगवान और भ(cid:567) 16. भगवान से महान 17. अशुभ चेहरा 18. बीरबल क(cid:938) (cid:981)खचड़ी 19. मुखा(cid:481) (cid:872)(cid:977)(cid:567) 20. खूबसूरत ब(cid:633)ा 21. अनोखा (cid:977)नमं(cid:499)ण 22. मीठा दंड उपहार का बंटवारा This Book is requested from Request Hoarder बादशाह अकबर को (cid:974)व(cid:467)दान और (cid:504)(cid:976)तभाशाली पु(cid:964)ष(cid:956) को अपने दरबार म(cid:950) रखने का ब(cid:966)त | शौक था जब भी कोई (cid:504)(cid:976)तभाशाली (cid:872)(cid:977)(cid:567) उसके रा(cid:656) म(cid:950) आता तो वह उसे अपने मं(cid:975)(cid:499)य(cid:956) | | म(cid:950) शा(cid:977)मल कर लेते थे अकबर का दरबार गुणी व बु(cid:977)(cid:722)मान लोग(cid:956) से भरा (cid:966)आ था इनम(cid:950) | से नौ लोग अकबर के दरबार म(cid:950) नवर(cid:699)(cid:956) के (cid:965)प म(cid:950) जाने जाते थे वे असाधारण - | (cid:504)(cid:976)तभाशाली और अपने अपने (cid:437)े(cid:499) म(cid:950) (cid:977)नपुण थे उ(cid:772)(cid:944) (cid:973)दन(cid:956) महेशदास नाम का एक युवका अकबर के रा(cid:656) म(cid:950) एक छोटे से गंवा म(cid:950) राहता | | था उसने अपने पूरा जीवन इसी गंवा म(cid:950) (cid:872)तीत (cid:974)कया था अब वह (cid:1009)(cid:977)नया क(cid:938) या(cid:499)ा | करना चाहता था उसने बादशाह के महल व बड़े नगर(cid:956) के बारे म(cid:950) ब(cid:966)त सारी कहा(cid:977)नयां | | सुनी थ(cid:944) उसे यहां घूमना रोमांचक लग रहा था उसने (cid:977)न(cid:878)य क(cid:938)या (cid:974)क वह बादशाह के | दरबार म(cid:950) जाएगा और वहां नौकरी पाने क(cid:938) को(cid:979)शश करेगा | वह ब(cid:966)त भीड़ वाले बाजार(cid:956) व नगर(cid:956) से होकर गुजरा और अंत म(cid:950) शहर प(cid:966)ंच गया , | महेशदास महल के दरवाजे के पास तक तो प(cid:966)ंच गया (cid:974)क(cid:940)तु अंदर (cid:504)वेश नह(cid:944) कर सका | , “ ?” (cid:467)दारपाल ने उसे पकड़ (cid:979)लया उसने पूछा आप कहां जाने क(cid:938) सोच रहे हो , “ |” महेशदास ने उ(cid:695)र (cid:973)दया म(cid:953) बादशाह को देखने जा रहा (cid:967)ं (cid:467)दारपाल ने जोर से हंसकर “ कहा मुझे लगता है उ(cid:772)(cid:956)ने तु(cid:839)े (cid:872)(cid:977)(cid:567)गत (cid:965)प से अपने भोजन क(cid:437) म(cid:950) रात के खाने के |” | : , “ (cid:979)लए आमं(cid:975)(cid:499)त (cid:974)कया है महेशदास शांत रहा (cid:467)दारपाल ने पुन कहा तु(cid:839)ारे (cid:979)लए | | बादशह को देखना संभव नह(cid:944) है वह ब(cid:966)त ही (cid:872)(cid:913) ह(cid:953) मुझे बादशाह का आदेश है (cid:974)क |” (cid:974)कसी को भी अंदर नह(cid:944) जाने (cid:973)दया जाए | , “ महेशदास ने (cid:467)दारपाल से अंदर जाने के (cid:979)लए आ(cid:486)ह (cid:974)कया (cid:467)दारपाल ने कहा म(cid:953)ने तु(cid:839)े |” , “ ?” कहा न (cid:974)क म(cid:953) तु(cid:839)े अंदर नह(cid:944) भेज सकता (cid:967)ं महेशदास ने कहा परंतु (cid:583)(cid:956) (cid:467)दारपाल , “ | ने कहा (cid:583)(cid:956)(cid:974)क तुम गरीब हो हर (cid:872)(cid:977)(cid:567) बादशाह को देखने के (cid:979)लए मुझे कु छ देता है , | ?” जैसे एक गाय एक बकरी या कढ़ाई क(cid:938) (cid:966)ई च(cid:778)ल तुम मुझे (cid:583)ा दे सकते हो , “ | महेशदास ने कहा मेरे पास अभी तो कु छ भी नह(cid:944) हे (cid:974)क(cid:940)तु म(cid:953) वादा करता (cid:967)ं (cid:974)क जो कु छ , |“ भी मुझे बादशाह से उपहार के (cid:965)प म(cid:950) (cid:977)मलेगा उसम(cid:950) से म(cid:953) तु(cid:839)े आधा दे (cid:1018)ंगा (cid:467)दारपाल | जानता था (cid:974)क बादशाह एक उदार (cid:872)(cid:977)(cid:567) ह(cid:953) वह अकसर उ(cid:772)(cid:950) देखने के (cid:979)लए आने वाल(cid:956) | | को मंहगे उपहार (cid:973)दया करते ह(cid:953) इस(cid:979)लए (cid:467)दारपाल ज(cid:857)ी से सहमत हो गया । महेशदास ने महल म(cid:950) (cid:504)वेश (cid:974)कया वह ब(cid:966)त मंहगे कढ़ाई (cid:974)कए (cid:966)ए पद(cid:951) व कालीन देखकर । हैरान हो गया पूरा महल लाल बलुआ प(cid:707)र(cid:956) से बनाया गया था और बेहद खूबसूरती से । । सजाया गया था बादशाह अकबर दरबार के बीच म(cid:950) बैठा था महेशदास ने अकबर के । , “ , सामने झुककर अ(cid:978)भवादन (cid:974)कया अकबर ने कहा तुमने मुझे जो स(cid:833)ान (cid:973)दखाया है । ?” , उससे म(cid:953) ब(cid:966)त खुश (cid:967)ं बताओ बदले म(cid:950) तु(cid:839)(cid:950) मुझसे (cid:583)ा चा(cid:973)हए महेशदास ने कहा “ ! ।” जहांपनाह य(cid:973)द ऐसा है तो मुझे सौ कोड़े मेरी नंगी पीठ पर बरसाने का इनाम द(cid:950) | , “ | स(cid:508)ाट ब(cid:966)त हैरान हो गया उसने कहा यह तो ब(cid:966)त अजीब इनाम है तुम (cid:583)(cid:956) मुझसे ?” , “ ! ऐसा इनाम मांग रहे हो महेशदास ने कहा महाराज जब म(cid:953) आपसे (cid:977)मलने के (cid:979)लए आ , , रहा था तो (cid:729)ारपाल ने मुझ से कहा (cid:974)क आपसे जो मुझे (cid:504)ा(cid:775) होगा उसका आधा मुझे उसे

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