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44 Upay By Anwar Al Awlaqi PDF

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1 जिहाद फी सबीलिल्लाह में इमाम अनवर अल अवलक़ी रहिमहुल्लाि 2 सुची अनुवादक की बातें .................................................................................................................. 6 तमहीद ................................................................................................................................... 7 1. मुिाहहद बनने की इच्छा करना ............................................................................................ 7 2. अल्लाह तािा से शहादत की दआु करना ............................................................................. 8 3. धन से जिहाद करना अर्थात जिहाद में अपनी दौित ख़चच करना। ......................................... 9 4. मुिाहहदीन के लिए फं ड इकट्ठा करना .................................................................................. 9 5. मुिाहहद को आर्र्थिक सहायता प्रदान करना ........................................................................ 10 6. मुिाहहद के पररवार का ध्यान रखना। ................................................................................. 10 7. शहीद के पररवार की कफाित (देखभाि) करना! ................................................................. 11 8. क़ै दीयों के पररवार की कफाित (देखभाि) करना .............................................................. 12 9. मुिाहहदीन को ज़कात दे कर जिहाद में भाग िेना! ............................................................. 12 10. मुिाहहदीन के लिए चचककत्सा सुववधा का प्रबन्ध करना! ..................................................... 13 11. मुिाहहदीन का साहस बढाना। .......................................................................................... 14 12. मुिाहहदीन का बचाव करना और उन के समर्थचन में बोिना ............................................... 14 13. मीकडया के झूठ को बेनकाब करना .................................................................................... 15 14. मुनावफकीन की पहचान करना ......................................................................................... 16 पहिा वबिंद ु.......................................................................................................................... 17 दसू रा वबिंद ु........................................................................................................................... 17 15. दसू रों को जिहाद पर उभारना।........................................................................................... 18 3 16. मुिाहहदीन के राज़ों(भेदों) की रक्षा करना .......................................................................... 18 17. मुिाहहदीन के लिए दआु करना ......................................................................................... 19 18. मुिाहहदीन के प्रामाजिक समाचारों को ढूंढकर उनको फ़ै िाना ........................................... 20 19. मुिाहहदीन के आलिमों और उनके मागचदशचकों के िेखों को फ़ै िाना .................................. 21 20. उिमा का मुिाहहदीन के हहत में फतवा िारी करना। ....................................................... 22 21. उिमाओ,ं और दीनी मागचदशचकों को जिहाद की सही खबर ें पहंचाना। ................................. 22 22. शारीररक व्यायाम ........................................................................................................... 23 23. स़ैन्य प्रशशक्षि (फौिी ट्रेवनिंग) ......................................................................................... 24 24. मेकडकि फर्स् च एड (प्रार्थचमक चचककत्सा) .......................................................................... 24 25. जिहाद से संबंर्धत वफक्ही मसाइि सीखना। ................................................................... 25 26. मुिाहहदीन की रक्षा करना, और उनको पनाह देना। .......................................................... 25 27. अि विा वि बरा(दोस्ती और दश्मु नी) के अकीदे का प्रचार करना ..................................... 26 28. िडाइयों में गगरफ्तार होने वाि े मुसिमानों के संबंध में फि च की अदाएगी। ........................ 27 30. इंटरनेट की िडाई िडना ................................................................................................. 28 30.बच्चों म ें जिहाद और मुिाहहदीन की मुहब्बत डािना। ........................................................ 28 31. सुख की चाह, आिस और आरामदायक िीवन छोडना ..................................................... 29 32. ऐसे हनरों में वनपुिता प्राप्त करना, माहहर बनना जिसकी जिहाद को िरूरत ह।़ै .................. 30 33.जिहादी इज्तेमाईयत(समस्तीवाद) अपनाना ....................................................................... 30 34.संस्काररक और अध्यात्मिक प्रशशक्षि ................................................................................. 31 35.उिमा ए हक को ढूंढना .................................................................................................... 32 4 36.हहिरत की त़ैयारी करना। .................................................................................................. 32 37.मुिाहहदीन की शुभचचिंता मुिाहहदीन को नसीसत करना .................................................... 33 38.वफतनों स े संबंर्धत हदीसों का अध्ययन करना ................................................................... 33 39.वफरऔन और उसके िादगू रों की भूचमका स्पष्ट करना। ....................................................... 34 40.अनाशीद अर्थात तराने ..................................................................................................... 35 41.इस्लाम दश्मु न शगियों की आर्र्थिक स्थिकत कमज़ोर करना। ................................................ 35 42. अरबी भाषा सीखना ....................................................................................................... 36 43. जिहादी लिट्रेचर का दसू री भाषाओं में अनुवाद करना ....................................................... 36 44.ताइफ-ए-मंसूरा की ववशेषताएं बयान करना .......................................................................37 5 अनुवादक की बातें िो पुस्तस्तका आपके हार्थों में ह।़ै यह इमाम अनवर अविकी रहहमहल्लाह की ककताब 44 way of supporting jihad का हहिंदी अनुवाद ह।़ै जिसका मिू संदभच मुहम्मद वबन अहमद अस सालिम हवफिहल्लाह هیف ۃکراشملاو داھجلا ۃمدخل ۃلیسو ۳۹ की अरबी ककताब ह।़ै इस ककताब में जिहाद में भाग िेने के ववजभन्न उपाय बताए गए ह,़ै जिनमें स े कुछ उपाय ऐसे ह,ैं जिनका संबंध जिहाद की तय़ै ारी से ह।़ै और बहत से उपाय ऐसे ह,ैं जिनका संबंध प्रत्यक्ष रूप में जिहाद से ह,ैं जिनको िान कर प्रत्येक मसु िमान प्रत्यक्ष रूप से जिहाद में भाग ि े सकता ह।़ै यही कारि ह,़ै कक यहूदी और पचिमी ववचारकों ने इस िखे पर गहरा शोध करके यह वनिचय लिया ह,़ै कक यह ककताब मुसिमानों को िागरूक करके मद़ै ान में िाने और हमारी सत्ता को िड से उखाड फें कने के लिए अि-कायदा के ववचारों की तरह प्रभावशािी ह।़ै इसी िाभदायकता के कारि इमाम अनवर अविकी रहहमहल्लाह ने इस ककताब का अंग्रेिी में अनुवाद ककया। िो उनकी दसू री ककताबों और तकरीरों की तरह वनसंदेह एक अनमोि उपहार ह।़ै अंग्रेिी में अनुवाद के बीच अनवर अविकी रहहमहल्लाह ने स्पष्ट ककया ह़ै, कक मैंने अपनी ककताब म ें श़ैख सालिम की जिस िखे को आधार बनाया ह।़ै उसका अनुवाद करते समय अंग्रेिी पढे लिखे िोगों और वतचमान युग के अनुसार कुछ िरूरी पररवतचन ककया ह।़ै वफर उस अंग्रेिी अनुवाद का उदच ू अनुवाद इमरान बशीर ने ककया, मैंने उसी उदच ू अनुवाद को आधार बनाकर इसका हहिंदी में अनुवाद ककया ह।़ै मेरे ददि में चाहत उत्पन्न हई, कक जिहादी ककताबों का हहिंदी में भी अनुवाद ककया िाए ताकक अर्धक से अर्धक भारतीय मुसिमान इन से िाभान्वित हो सकें। एवं जिस तेिी से आगे बढती हई मिु ाहहदीन की कारवाइयां, और व़ैचिक पररवतचनकारी जिहादी आंदोिनों की कामयावबयां, इस बात का एिान कर रही ह,ैं कक बहत िल्द वह समय आने वािा ह,़ै कक ववि का हर वह मुसिमान जिसमें ईमानी ग़ैरत मौिूद ह,़ै जिहाद में भाग िेने से वंचचत नहीं रहगे ा। यह सब पररस्थिकतया ं भी इस बात का तकािा कर रही हैं, कक जिहादी लिट्रेचरों का अनुवाद ववजभन्न भाषाओं में ककया िाए। उन्हीं भाषाओं में से एक भाषा हहिंदी भी ह।़ै िो भारत में राष्ट्र भाषा की हच़ै सयत लिए हए ह।़ै तो इस भाषा में भी अनुवाद करना मुझे आवश्यक महसूस हआ। अल्लाह तआिा इस ककताब को परू े ववि के मुसिमानों के लिए िाभदायक बनाए। उनके ऊपर बाकति की ओर से डािे हए पदों को दरू करने, और ववजभन्न ववर्धयों द्वारा जिहाद में भाग िेने का माध्यम बनाए। और हम सबके प्रयासों को स्वीकार करके अपनी हमेशा की प्रसन्नता का माध्यम बना दे। आमीन हहिंदी अनुवादक 6 तमहीद जिहाद फी सबीलिल्लाह दीने इस्लाम का सब से महान कायच ह ़ै । और उम्मते मुस्लस्लमा की सरबुिंदी, प्रकतष्ठा और सफिता का केवि एक मात्र रास्ता यही ह।़ै िब कावफरों ने मुसिमानों की धरकतयों पर कब्जा िमा रखा हो, िब तागतू के ििे , अल्लाह के वलियों से भरे हऐ हों, िब अल्लाह का कानून दवु नया के ककसी कोने में भी िाग ू न हो, िब प्रत्यक्ष रूप से इस्लाम पर हमिे ककए िा रह े हों। िब मुस्लस्लम दवु नया के शासक मुसिमानों के ववरोध में कावफरों का सार्थ दे कर इस्लाम से वनकि गए हों, ऐसी स्थिकत में इस्लाम और मुसिमानों की सुरक्षा के लिए हर मुसिमान पर जिहाद फज़च हो िाता ह।़ै यही कारि ह ़ै कक आि दवु नया भर के मुसिमानों पर क्षमता और आवश्यकता के अनुसार जिहाद फज़़े ऐन ह।़ै ददफाई जिहाद िो ईमान के बाद सब से अर्धक महत्वपूिच फज़च ह।़ै इस का हक्म इकदामी जिहाद से कहीं ज़्यादा सख़्त ह।़ै उदाहरितया ददफाई जिहाद मााँ बाप के इन्कार के बाविूद बच्चों पर, पकत की अपगत्त के बाविूद पत्नी पर, और कज़च देने वािे की अनुमकत के बग़ैर कज़च िेने वािे पर फज़च हो िाता ह।़ै और ऐसी स्थिकत में जिहाद से दरू रहने वािे के लिए सख़्त वईदें आई ह।ैं मेरे प्यारे भाईयो और बहनो! ये मामिा अब महत्वपूिच ही नहीं बल्कि गंभीर हो चुका ह।़ै क्योंकक हमारा दश्मु न कोई एक कौम, राष्ट्र और एक नस्ल नहीं, बल्कि हमारा दश्मु न कावफरों की वतचमान व़ैचिक व्यविा ह।़ै जिस की रािऩैकतक और स़ैवनक योिनाऐं व़ैचिक स्तर पर तबाहहयां फ़ैिा रही ह।ैं कुफ्फार हमारे खखिाफ ऐसी योिनाऐ ं बना रह ेह।ैं िो इस से पहिे कभी नही बनाई गईं। इस लिए हम उस महायुद्ध अर्थात अि मिहमतिु कुबरा की ओर बढ रह े ह,़ै िो मसु िमानों और रोचमयों के बीच िडी िानी ह,ैं जिस के बार े मे अहादीस म ें नबी सल्लल्लाह अिह़ै ह वसल्लम ने बताया ह।़ै मैं आगे बढने से पहिे वफर ये बतादाँ,ू कक इस समय जिहाद हर मुसिमान पर क्षमता के अनुसार फज़च ह।़ै इसलिए िो भी मुसिमान अल्लाह को प्रसन्न करना चाहता ह,़ै उस पर आवश्यक ह ़ैकक वह जिहाद में भाग िेने के तरीके ढूंढे और मुिाहहदीन को अपनी मदद दे। नीचे जिहाद में शाचमि होने और सहायता करने के 44 उपाय बताए गए ह।ैं 1. मुिाहहद बनने की इच्छा करना जिहाद करने के लिए सब से पहिी चीज़ हृदय में इच्छा का होना, कक आप भी मुिाहहदीन के सार्थ चमिकर कावफरों से िडाई करें। अल्लाह के रसूि सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने कहा। “िो व्यगि इस हाि म ें मरा, कक उस ने कभी जिहाद में भाग भी नही लिया, और न ही उस ने कभी अपने हृदय में इसकी इच्छा की, उस ने वनफाक की एक हाित पर मृत्यु पाई।“ (सही मुस्लस्लम), अल्लाह तािा फरमाते ह ैं : ( ۃ د َ ُع ہٗ َل اوْ د ُ َعَلََ جَ وْ رُ خُ ْلا اودُ ارََا وْ َلوَ ) “अगर वह िोग वास्तव में जिहाद में वनकिने के इच्छुक होते, तो वह िोग इस के लिए कुछ त़ैयारी करते।” (तोबा:46) 7 ददफाई जिहाद की पांच शतें उिमा ने बताई ह।ैं उदाहरि के तौर पर अबू कुदामा रहहमहल्लाह के निदीक मुसिमान हो, बालिग(वयस्क) हो, वनधचन न हो, और शारीररक रूप से अक्षम न हो, वनधचन व्यगि के लिए वनधचन होने का बहाना उस समय स्वीकार ककया िाएगा, िब कोई व्यगि उसे आर्र्थिक सहायता प्रदान करन े के लिए त़ैयार न हो। जिस व्यगि को गभं ीर बीमारी िगी हई हो, वह भी मािूर होगा। िके कन अगर ककसी के ददि में जिहाद की चाहत ही मौिूद न हो, तो ऐसे मािूर का बहाना अल्लाह के यहां स्वीकार नहीं ककया िाएगा इसलिए कक अल्लाह ने सूरह तौबा की आयत 92 में फरमाया ह।़ै امَ اوْ دُ جِ َي لََ َا اًنزَ حَ عِ ـمْ دَ ـلا نَ مِ ضُ يْ فِ تَ مْ ـهُ ـنُ يُ ْعَاوَ اوْ َ لوَ تَ ِۖهِ يْ َلَع مْ كُ ُلمِ ـحْ َا آمَ دُ جِ َا لََ تَ ْلُق مْ ـهُ ـَلمِ حْ تَ ِل كَ وْ تَ َا آمَ اَذِا نَ ْيذِ ـَ لا لََ عَ لََ وَ (92) نَ وْ قُ فِ نْ يُ अनुवाद:- उन िोगों पर कोई गुनाह नहीं ह ़ै जिन्होंने आपसे वनवेदन ककया कक आप उनके लिए सवारी का प्रबंध कर दें। और आपने फरमाया कक मेरे पास तम्हु ारे लिए सवाररयों का प्रबंध नहीं ह ़ैतो इस स्थिकत में वापस िौटे कक उनकी आंखों से आसं ू बह रह े र्थे इस गम के कारि कक वह जिहाद में िाने के लिए खुद रुपयों का प्रबंध नही कर सकते। 2. अल्लाह तािा से शहादत की दआु करना अल्लाह के रसूि सल्लल्लाह अिह़ै ह वसल्लम ने फरमाया “िो कोई व्यगि भी सच्चे मन से अल्लाह स े शहादत की दआु करेगा, तो अल्लाह तािा उसे शहादत के िान पर पहाँचा देंगे चाह े वह वबस्तर पर ही मरे। (सही मुस्लस्लम) शहादत की दआु करना अल्लाह तािा को बहत पसंद ह।़ै इसलिए कक इससे पता चिता ह,़ै कक आप अल्लाह के लिए अपनी िान वनछावर करना चाहते ह।ैं िेककन आप को सावधान रहना चाहहए, कक कहीं यह दआु केवि आप के होंठों पर ही न रह िाए, िो व्यगि भी अल्लाह से शहादत की दआु मागं ता ह।़ै अगर वह दआु मागं ने में सच्चा ह ़ै तो वह जिहाद की हर पकु ार पर, अल्लाह के रास्ता में मौत के लिए िरुर वनकि खडा होगा। िेककन मुझे आियच ह,़ै कक उनका व्यवहार वबिकुि उसके ववपरीत ह।़ै आि अल्लाह के दश्मु न अगर मुसिमानों पर हावी ह,ैं और उनके क्षेत्रों पर कब्जा कर रखे ह,ैं तो उसका असि कारि यही ह,़ै कक शहादत की मुहब्बत से हमारे ददि खािी हो चुके ह।ैं रसिू ुल्लाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम न े फरमाया। करीब ही कौम ें तुम पर हमिा करने के लिए एक दसू रे को इस प्रकार बुिाएंगी, जिस प्रकार दस्तरखान पर भूख े िोगों को बुिाया िाता ह।़ै सहाबा ककराम रजियल्लाह अन्हमु अिमईन ने पूछा। ऐ अल्लाह के रसिू क्या उस समय हमारी सख्यं ा कम होंगी। तो आपने फरमाया। नहीं, बल्कि तुम बहत बडी संख्या में होगे। मगर तुम्हारी स्थिकत ऐसी होगी, ि़ैसे समुद्र का झाग। और अल्लाह तआिा तम्हु ारे दश्मु नों के ददि से तुम्हारा डर वनकाि देंगे। और तुम्हारे ददिों में वहन आ िाएगा। सहाबा ककराम ने वफर पूछा। अल्लाह के रसूि सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम! यह वहन क्या चीज़ ह?़ै रसूिल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने फरमाया दवु नया से प्रेम और मौत से घृिा। (अब ू दाऊद) 8 मेरे भाईयो! शहादत हमारी धाचमिक ररवायत का अंग ह।़ै आएं इस ररवायत को वफर से उम्मत में जिदिं ा करें। क्योंकक अल्लाह के दश्मु न हमारी जिस चीि से डरते ह,ैं वह यही ह,़ै कक मुिाहहदीन मौत से दीवानों की तरह प्यार करते ह।ैं 3. धन से जिहाद करना अर्थात जिहाद में अपनी दौित ख़चच करना। एक आयत को छोड कर कुरआन में मािों से जिहाद करने का चचा हर उस िान पर ककया गया ह़ै, िहां पर अल्लाह ने अपनी िानों से जिहाद का चचा ककया ह।़ै इससे मािों द्वारा जिहाद के महत्त्व का पता चिता ह़ै, कक जिहाद ककतना अर्धक धन दौित पर वनभचर ह।़ै दसू रे शब्दों मे हम कह सकते ह,ैं (प़ैसा नही तो जिहाद नही) अि कुतचबी रहहमहल्लाह ने अपनी तफ़्सीर मे लिखा ह,़ै कक सदके का अिर दस गुना कर ददया िाता ह।़ै िबकक जिहाद में िो ख़चच ककया िाता ह,़ै उस का अिर 700 गुना अर्धक ददया िाता ह।़ै अल्लाह तािा फरमात े ह ैं । نْ مَ ِل فُ عِ اضَ يُ لل ٰ ا وَ ةٍۗ َب حَ ةُ ئَ امِ ةٍ ـَلبُ نْ سُ ل ِ ُك ْفِِ لَ ِبانَ سَ عَ بْ سَ تْ تَ بَ نْ َا ةٍ َب حَ لِ َثمَ كَ للِ ٰ ا لِ يْ بِ سَ ْفِِ مْ ـهُ ـَلاوَ مْ َا نَ وْ قُ فِ نْ يُ نَ يْ ذِ ـَ لا لُ َث م ءُ آشَ يَ (सूरह बकरह आयत 261) अनुवाद:-िो िोग अपना माि अल्लाह के रास्ते म े ख़चच करते ह।ैं उस का उदाहरि ऐसा ह,़ै ि़ैसे एक दाना बोया िाए, और उस से सात बालियां वनकिे, और हर बािी मे सौ दाने हों, इस तरह अल्लाह जिसके लिए अमि को चाहता ह ़ै कई गुना बढा देता ह।ैं (बकरह 261) मुख्य रूप से िो मुसिमान बाहर के देशों मे रहते ह।़ै उनके लिए आि के यगु में जिहाद में भाग िेने का एक उत्तम रास्ता यह ह,़ै कक वह अपना माि जिहाद मे ख़चच करें। इस कारि से कक कभी-कभी जिहाद के लिए मुिाहहदीन से अर्धक माि की आवश्यकता होती ह।़ै श़ैख़ अब्दल्लु ाह अज़्जाम रहहमहल्लाह कहते ह।़ै “मुसिमानों को जिहाद की ज़रुरत ह,़ै और जिहाद को प़ैसों की” 4. मुिाहहदीन के लिए फं ड इकट्ठा करना अपना माि ख़चच करने के सार्थ-सार्थ आप को दसू रों को भी जिहाद में ख़चच करने पर उभारना चाहहए। रसूिल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने फरमाया “जिस व्यगि ने ककसी दसू रे व्यगि को नेकी की राह ददखाई। उसे भी उस नेकी करने वािे के बराबर अिर चमिगे ा।" दसू रों को जिहाद म ें ख़चच करने के लिए उभाररये। वास्तव में जिहाद में ख़चच करने पर उभारना सुन्नते रसिू ल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम पर अमि करना ह।़ै क्योंकक अल्लाह के रसूि सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम अर्धकतर िडाइयों में िाने से पहिे जिहाद में माि ख़चच करने को प्रोत्साहहत करते र्थे। आि जिहाद को प़ैसों की बहत आवश्यकता ह,़ै इस लिए आप केवि अपना माि ही जिहाद में ख़चच न करें, बल्कि अपने चमत्रों और घर वािों को जिहाद में ख़चच करने पर उभाररये। 9 5. मुिाहहद को आर्र्थिक सहायता प्रदान करना अल्लाह के रसूि सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने फरमाया। “जिस ने अल्लाह के रास्ते में ककसी मुिाहहद के ख़चों को सहन ककया, तो उसने भी जिहाद ककया” इसमें मुिाहहद के हर प्रकार का ख़चच उठाना सस्तम्मलित ह।़ै अर्थात उस के हर्र्थयार (Weapon) और िडाई के ववभन्न खचों के अिावा उसके रहन-सहन, खाने और यात्रा इत्यादद के खचच का प्रबन्ध करना ह।़ै इस अमि द्वारा उम्मत के धनी और वनधचन िोग सवाब में बराबर हो सकते ह।ैं यानी कोई मािदार ककसी वनधचन मुिाहहद को जिहाद में माि द्वारा सहायता करगें े, तो वनधचन मुिाहहद को जिहाद का अिर चमिगे ा। और मािदार (धनी) को भी उस मुिाहहद के जिहाद के बराबर अिर चमिेगा। क्योंकक रसूिल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने यह फरमाया ह,़ै जिसने अल्लाह की राह में िडने वािे का सामान पूरा ककया। तो ऐसा ह,़ै ि़ैसे कक उसने खदु िडाई में भाग लिया हो। 6. मुिाहहद के पररवार का ध्यान रखना। मुिाहहद की अनुपस्थिकत में उस के पररवार की सरु क्षा करना, उन की आवश्यकता को परू ा करना, और उन की आर्र्थिक सहायता करना और उन की इज़्जत की रखवािी करना भी बहत अिर और सवाब का काम ह।़ै रसूिल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने फरमाया। “िो ककसी मुिाहहद की अनुपस्थिकत में उस के पररवार और घर का ध्यान रखेगा, वह मुिाहहद के अिर में से आधा हहस्सा प्राप्त करगे ा” (मुस्लस्लम) मुिाहहद के घरवािों की इज़्जत की सुरक्षा करना, पीछे रह िाने वािे पर इस तरह ज़रूरी ह,़ै िस़ै े उस की अपनी मााँ की सरु क्षा उस पर ज़रूरी ह।़ै िो ककसी मुिाहहद के घरवािों स े ख़्यानत करेगा, तो अल्लाह तआिा कयामत के ददन मुिाहहद को अनुमकत देगें, कक उस ख़्यानत करने वािे के आमाि मे से जितनी नके ी िेना चाह,े वह िे िे, तो मुिाहहद उस के आमाि मे से हर वो नेकी िे िेगा िो वह चाहगे ा। (मुस्लस्लम) जिस व्यगि ने न खुद िगं की, न ककसी मुिाहहद की िडाई का खचच उठाया, न ककसी मुिाहहद के घर वािों की सुरक्षा की, तो वह व्यगि मरने से पहिे ककसी बडी मुसीबत मे ज़रूर गगरफ्तार होगा। (अबु दाऊद) हर मुसिमान अपने घरवािों के बारे में बहत चचिंकतत रहता ह।़ै िेककन यही वह चीज़ ह़ै, जिस से श़ैतान िाभ उठाता ह ़ै और ददि में ववजभन्न प्रकार के वसवसे प़ैदा करता ह।़ै और इस तरह वो उसे जिहाद से दरू कर देता ह।़ै अगर कोई श़ैतान के हर्थकंडो से बच वनकिे, और जिहाद करने के लिए घर से वनकि खडा हो, िेककन इस के बाविूद भी वहााँ श़ैतान उस के पास बार-बार आएगा और उस मुिाहहद के हृदय में कमज़ोरी प़ैदा करने का प्रयास करगे ा। उसको यह ध्यान ददिाएगा कक “तुम अपने प्यारों को ककस हाि में छोड आए हो?” इस लिए मुिाहहद के घर वािों की ज़म्मेदारी िेने से मुिाहहदीन को बहत बडी मदद चमिती ह।़ै इस से उन के हृदय मज़बूत होते ह।ैं और वह पूिचतः वनचििंत होकर जिहाद में व्यस्त रह सकते ह।ैं यही कारि ह ़ै कक रसूिल्लु ाह सल्लल्लाह अि़ैहह वसल्लम ने इसके बार े 10

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