चिन्तन-अनुचिन्तन ऐसे निबन्धों का संकलन है जिनमें हिन्दी और कोंकणी की मूलभूत एकता की पहचान का प्रयत्न किया गया है। लेखिका ने हिन्दी एवं कोंकणी भाषा में पाई जानेवाली समानताओं को इन निबन्धों में सोदाहरण अंकित किया है। दोनों भाषाओं के साहित्यों में मिलने वाले समान भावों, विचारों और शैलियों का अंकन भी इसमें हुआ है। इस बात में कोई शंका नहीं है कि यह पुस्तक भारतीय भाषाओं के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। Nasarathnd Paince VS K.S, Rac Road | Mangaiore- चिन्तन-अनुचिन्नन (हिन्दी तथा कोंकणी भाषा एवं साहित्य को मूलभूत एकता को पहचान) चिन्नन-अनुचिन्नन (हिन्दी तथा कोंकणी भाषा एवं साहित्य की मूलभूत एकता की पहचान) डॉ. एल. सुनीताबाई . । न प्रकाशक सुकृतीन्द्र प्राच्य-विद्या शोध संस्थान कोचिन-32 ३४ Te \E AN l / ~ वितरक ee | “जबाहर पुस्तकालय AT2/ >T L»L A~Y”EE Ry म धुरा (उ.प्र.)-28007 6 लेखक प्रकाशकः सुकृतीन्द्र प्राच्य-विद्या शोध संस्थान कूत्ताघाडी; तम्मनम कोचिन-682032 वितरक : कुंजबिहारी पचौरी जवाहंर पुस्तकालय सदर बाजार, मथुरा (G.)-2800 दूरभाष : 0565-40570 संस्करण : 2002 मूल्य : 25/- (एक सौ पच्चीस रुपये TE i 5 शब्दांकन : उमेश लेज़र प्रिंट्स, Rei-0032 | दूरभाष : 0Il-282 74 आवरण : उमेश शर्मा (दूरभाष : 0-282 790) मुद्रक : रुचिका प्रिंटर्स, दिल्ली-0032 प्रकाशकीय सुकृतीन्द्र प्राच्यविद्याशोध संस्थान का मूल उद्देश्य प्राच्यविद्या शिक्षण एवं अनुसंधान रहा है । इस संस्थान के अन्तर्गत कोंकणी भाषा के शिक्षण एवं अनुसंधान के लिए सन् 998 Ñ स्कूल ऑफ कोंकणी स्टडीस की स्थापना हुई | संस्थान के इस विभाग का प्रमुख उद्देश्य कोंकणी भाषा-शिक्षण के साथ-साथ अनुसंधान भी रहा है। इसके लिए साहित्य-संगोष्ठियों का आयोजन शोध-पत्रों एवं पुस्तकों का प्रकाशन आदि कार्य यहाँ परच ल रहा है। चिन्तन-अनुचिन्तन इस दिशा में प्रकाशित दूसरी पुस्तक है। पहली पुस्तक सन् 200 में प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक है कोंकणी बरयतना । इस पुस्तक के अन्तर्गत शुद्ध कोंकणी-लेखन से सम्बन्धित समस्याओं का सोदाहरण विश्लेषण हुआ है। चिन्तन-अनुचिन्तन की लेखिका डॉ. एल. सुनीता बाई, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग कोचिन विज्ञान व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, इस संस्थान के स्कूल ऑफ कोंकणी स्टडीस की सलाहकार समिति की सदस्या हैं। गत कई सालों से कोंकणी भाषा एवं साहित्य में शोध करती रही हैं। हिन्दी एवं कोंकणी के तुलनात्मक अध्ययन में इनकी विशेष रुचि रही है। चिन्तन-अजुचिन्तन ऐसे निबन्धों का संकलन है जिनमें हिन्दी और कोंकणी की मूलभूत एकता की पहचान का प्रयत्न किया गया है। लेखिका ने हिन्दी एवं कोंकणी भाषा में पाई जानेवाली समानताओं को इन निबन्धों में सोदाहरण अंकित किया है। दोनों भाषाओं के साहित्यों में मिलने वाले समान भावों, विचारों और शैलियों का अंकन भी इसमें हुआ है। इस बात में कोई शंका नहीं है किय ह पुस्तक भारतीय भाषाओं के विद्यार्थियों और शोधार्थियों केल िए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। कोचिन-32 डॉ. वी. नित्यानन्द भट्ट 30-]-2002 निदेशक सुकृतीन्द्रप्राच्य-विद्या शोध-संस्थान कोचिन-32